Joharlive Desk

नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि 2006 से हुए चार सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारत में बाघ की संख्या सालाना छह प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है। इससे प्राकृतिक कारणों से होने वाली मौत की भरपाई हो रही है और अपने रिहाइश वाले क्षेत्र में क्षमता के हिसाब से बाघ रह रहे हैं।

मंत्रालय का यह स्पष्टीकरण आरटीआई से मिली जानकारी के बाद आया है, जिससे पता चला है कि प्राकृतिक मौत, शिकार, हादसे, संघर्ष सहित विभिन्न कारणों से पिछले आठ साल में 750 बाघों की जान गई है। मंत्रालय ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा दिए गए विवरण को साझा करते हुए उल्लेख किया है कि पिछले कुछ वर्षों में संख्या बढ़ने लगी है।

एनटीसीए ने कहा है ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के जरिए केंद्र सरकार के प्रयासों के कारण बाघों की संख्या में इजाफा होने लगा है। यह वर्ष 2006, 2010, 2014 और 2018 में अखिल भारतीय बाघ अनुमान के तथ्यों से भी पता चलता है।’

एनटीसीए के मुताबिक, ‘इन परिणामों से पता चलता है कि बाघों की संख्या में छह प्रतिशत की दर से इजाफा हो रहा है। यह प्राकृतिक तौर पर हुए नुकसान की भरपाई कर रहा है और क्षमता के हिसाब से बाघ वास में रह रहे हैं।’

आरटीआई आंकड़ों से पता चला है कि भारत में प्राकृतिक कारणों से 369 बाघों की मौत हुई, 168 बाघों का शिकार हुआ, 42 बाघों की मौत दुर्घटना और झड़प जैसे अप्राकृतिक कारणों से हुई, 101 बाघ की मौत अन्य कारणों से हुई। एनटीसीए ने कहा ‘2012 से 2019 के दौरान हर कोई देख सकता है कि देश में हर साल औसतन 94 बाघों की मौत हुई जो कि संख्या में इजाफे के कारण संतुलित हो गई है।’

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