रांची : कुछ सालों में इंसान गैजेट्स से घिर गया है. मोबाइल फोन,कंप्यूटर, लैपटॉप, टैब, स्मार्टवॉच, डिजिटल वॉच से लेकर कई चीजों का इस्तेमाल लोग कर रहे है. ऐसे में जब ये चीजें खराब हो जाती है तो इसके डिस्पोजल को लेकर लोग परेशान हो जाते है. वहीं जाने-अनजाने कचरे को डस्टबिन में डाल देते है, जो पर्यावरण के साथ ही चपेट में आने वाले जीव-जंतु को नुकसान पहुंचा रहा है. इस समस्या से निपटने के लिए झारखंड स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने रांची नगर निगम की बिल्डिंग में ही ई-वेस्ट के लिए डस्टबिन लगाया गया है. जहां शहर के लोग अपने घरों से निकलने वाले ई-वेस्ट को डाल सकते है. जिसका डिस्पोजल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड करेगा.
झारखंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड अलग-अलग सरकारी आफिस में जाकर वहां डस्टबिन लगा रहा है. ये डस्टबिन ई-वेस्ट के लिए है. जिसमें लोग अपने घर और आफिस में खराब या कबाड़ हो चुके ई-वेस्ट को डाल सकते है. इसके लिए लोगों से कोई चार्ज नहीं लिया जाएगा. वहीं ई-वेस्ट का प्रापर तरीके से डिस्पोजल किया जाएगा. जिससे कि पर्यावरण को नुकसान होने से बचाया जा सकेगा.
रांची नगर निगम ई-वेस्ट के डिस्पोजल को लेकर योजना बना रहा है. कुछ महीने पहले इस पर निगम में चर्चा भी हुई थी. जिसमें बताया गया था कि रांची नगर निगम ई-वेस्ट के कलेक्शन के लिए भी डोर टू डोर सर्विस शुरू करेगा. इससे कॉल करते ही निगम की गाड़ी आपके घर से ई-वेस्ट उठा ले जाएगी.
जागरूक नहीं होने के कारण लोग ई-वेस्ट को सामान्य कचरे के साथ डाल देते है. इसके बाद ये कचरा अन्य कचरे के साथ मिलकर पानी, नाले और हवा को जहरीला बनाने लगता है. बताते चलें कि इ वेस्ट में टीवी, फ्रिज, एसी, कंप्यूटर मॉनिटर, कंप्यूटर से जुड़े पार्ट्स, कैलकुलेटर, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के पुर्जे शामिल होते हैं. जिसे बनाने में रसायन और पदार्थ इस्तेमाल होते हैं, वे काफी हानिकारक होते हैं. कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और बिजली का सामान, ट्यूब – बल्ब में सीसा, जस्ता, कैडमियम, बेरियम जैसी धातुओं का इस्तेमाल किया जाता हैं. ये तत्व पानी में मिलकर उसे जहरीला कर देते हैं.
बता दें कि यूनाइटेड नेशन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 से 2030 के दौरान वैश्विक स्तर पर ई-वेस्ट में तकरीबन 38 परसेंट तक की बढ़ोतरी हो जाएगी. इस रिपोर्ट के अनुसार 2019 में एशिया में सर्वाधिक लगभग 24.9 मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ. वहीं 2020 में उत्पन्न कुल ई-वेस्ट के 18 परसेंट से भी कम हिस्से का रीसाइकिल किया जा सका. रिपोर्ट में बताया गया कि यदि पूरे वेस्ट का रीसाइकिल किया जाता तो कम-से-कम 57 बिलियन डॉलर प्राप्त किया जा सकता था.
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