रांचीः नीति आयोग ने 2030 तक के लिए राज्यों की एसडीजी की प्रगति को मापने की प्रक्रिया के तहत गुरुवार को झारखंड में कार्यशाला का आयोजन किया. इस कार्यशाला में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी), इंडिया इंडेक्स और मल्टीडाईमेंशनल प्रोवर्टी इंडेक्स विषय पर विचार-विमर्श किया गया.
नीति आयोग की ओर से आयोजित राज्यस्तरीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि नीति आयोग ग्रामीणों के आर्थिक संसाधनों को बढ़ाने में सहयोग करे. उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य के लिए कार्ययोजना बनाने से पहले उस राज्य में निवास करने वालों की स्थिति को समझना जरूरी है. पूरे देश में एक जैसा फॉर्मूला लागू करना ठीन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अपनी सभ्यता और संस्कृति के माध्यम से भी आगे बढ़ा जा सकता है.
राज्य में 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड में 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित हैं, 30 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहें हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड के 10 लाख श्रमिक मजदूरी करने दूसरे राज्यों में जाते हैं. राज्य के कई जिलों में खेती की जमीन खत्म हो गई है और 80 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं. इस स्थिति में ग्रामीणों को बढ़ाने का रास्ता तैयार करना होगा.
ग्रामीणों को सशक्त बनाने की जरूरत
नीति आयोग के समक्ष झारखंड की स्थिति का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल, लोगों की आय में बढ़ोतरी, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर कैसे आगे बढ़ा जाए, यह चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा कि पहले सिर्फ खनन और खनिज पर ही ध्यान केंद्रित किया गया. उन्होंने कहा कि योजनाएं और बजट तो बनती हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. राज्य सरकार के पास संसाधन सीमित हैं. सतत विकास की बात करें, तो वर्तमान में जड़ को सशक्त करने की जरूरत है.
खनन क्षेत्र का प्रबंधन जरूरी
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोल क्षेत्र में राज्य सरकार विकास का कार्य नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा कि खनन क्षेत्र के लोग लाल पानी पीने को विवश हैं. यूरेनियम के खदान वाले क्षेत्र में बच्चे अपंग जन्म ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन सब का सही प्रबंधन हो, तो इस राज्य को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है.
मनरेगा के तहत काम करना नहीं चाहते मजदूर
मुख्यमंत्री ने मनरेगा के तहत सबसे कम पारिश्रमिक झारखंड में होने का जिक्र करते हुए कहा कि ग्रामीण मनरेगा के तहत कार्य करना पसंद नहीं कर शहरों की ओर रुख करते हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से वन उत्पाद का जो मूल्य तय किया गया है, वह काफी कम है. उन्होंने कहा कि आदिवासी सदियों से जंगल में रहते आ रहें हैं. जंगल उनकी आजीविका का साधन है. इस स्थिति में आदिवासी वन उत्पाद के साथ मिलते हैं, तो पुलिस उन आदिवासियों पर कार्रवाई करती हैं. यह ठीक नहीं है. कार्यशाला में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, नीति आयोग के सलाहकार संयुक्ता समाना सहित कई अधिकारी उपस्थित थे.