नई दिल्ली: दिल्ली हाइकोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट कर दिया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन की याचिका को आगे और कोई स्थन प्रदान नहीं किया जाएगा। मालूम हो कि लोकपाल ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख शिबू सोरेन की ओर से दायर एक याचिका का गुरुवार को विरोध किया, जिसमें बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार रोधी प्राधिकार की ओर से उनके खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई है।
सोरेन के वकील ने व्यक्तिगत परेशानी का दिया हवाला
उच्च न्यायालय ने आगे स्थगन न प्रदान किए जाने की बात तब कही, जब सोरेन का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि उनकी कुछ निजी दिक्कतें हैं इसलिए सुनवाई की अगली तिथि चाहिए। इस दौरान लोकपाल का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्थगन के अनुरोध का विरोध किया। सोरेन के वकील की मांग पर ध्यान देते हुए न्यायमूर्ति एम सिंह ने सुनवाई को स्थगित करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि आगे अब सुनवाई की तिथि नहीं बदली जाएगी।
12 सिंतबर को लोकपाल की कार्यवाही पर लगी थी रोक
कोर्ट ने कहा कि अब इस पर अगली सुनवाई आठ फरवरी को होगी और कहा कि तब तक अंतरिम आदेश जारी रहेगा। इससे पहले 12 सितंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने यह कहते हुए लोकपाल की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी कि इस पर विचार करने की जरूरत है। गौरतलब है कि सोरेन ने अधिकार क्षेत्र के आधार पर सीबीआई को प्रारंभिक जांच की कार्रवाई और आदेश को चुनौती दी है।
दुबे के आरोपों को सोरेन ने ठहराया गलत
बताते चलें कि अगस्त, 2020 में की गई शिकायत में भाजपा नेता दुबे ने दावा किया कि शिबू सोरेन और उनके परिवार के सदस्यों ने सरकारी खजाने का दुरुपयोग करके आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है और भ्रष्टाचार में घोर संलिप्त हैं। जबकि सोरेन ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों को सिरे से गलत ठहराया।
अपनी याचिका में सोरेन ने दावा किया है कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 53 के तहत कथित अपराध के सात वर्ष बीत जाने के बाद किसी भी शिकायत की जांच करने का अधिगार लोकपाल को नहीं है और उसने शिकायत पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सीबीआई को गलत तरीके से समय विस्तार दिया है।