New CJI Sanjiv Khanna : न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने आज, 11 नवंबर को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें सुबह 10 बजे राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में शपथ दिलाई. इस शपथ ग्रहण के साथ ही वह न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल रविवार को समाप्त हुआ. न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल 13 मई, 2025 तक रहेगा.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं. इनमें प्रमुख रूप से चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना शामिल हैं. इसके अलावा, उन्होंने ईवीएम की पवित्रता को बरकरार रखते हुए चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को सुरक्षित करार दिया.
न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली के जिला कोर्ट में वकील के रूप में की थी और बाद में दिल्ली हाई कोर्ट में भी प्रैक्टिस की. 2005 में वह दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने, और 2006 में स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए. 18 जनवरी, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया. उनकी विशेष रुचि वाणिज्यिक कानून, कंपनी कानून, पर्यावरण कानून और चिकित्सा लापरवाही जैसे क्षेत्रों में रही है.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना दिल्ली के एक प्रतिष्ठित न्यायिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता, न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे थे, जबकि उनके चाचा, न्यायमूर्ति एच आर खन्ना, आपातकाल के दौरान अपने असहमति के कारण चर्चित हुए थे. 1976 में उन्होंने उस फैसले से असहमत रहते हुए इस्तीफा दिया था जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को वैध ठहराता था.
न्यायमूर्ति खन्ना ने हमेशा न्यायिक व्यवस्था में सुधार और लंबित मामलों की संख्या को कम करने के लिए प्रयास किए हैं. उनका मानना है कि न्याय वितरण को तेज़ और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में सुधार होना चाहिए. उनके इस दृष्टिकोण से सुप्रीम कोर्ट के कार्यकलापों में और अधिक गति आने की उम्मीद है.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की शपथ के बाद, वह एक नए अध्याय की शुरुआत करेंगे, जिसमें न्यायिक सक्रियता और कानूनी सुधारों की दिशा में कई महत्वपूर्ण फैसले और कदम उठाए जाने की संभावना है. जस्टिस खन्ना की दृष्टि में न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और त्वरित बनाना प्रमुख है, ताकि न्याय का दायरा जनता तक आसानी से पहुंचे. उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की दिशा में बदलाव और न्यायिक सुधार की उम्मीदें बनी हुई हैं, जो आने वाले वर्षों में भारतीय न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं.
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