Patna : देशभर में चर्चित NEET पेपर लीक कांड के मास्टरमाइंड संजीव मुखिया को आखिरकार बिहार पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने पटना से गिरफ्तार कर लिया है. बीती देर रात हुई इस गिरफ्तारी के बाद पूरे शिक्षा तंत्र में खलबली मच गई है. बता दें कि बीते कई महीनों से फरार चल रहे संजीव मुखिया पर पुलिस ने 3 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था. मिली जानकारी के अनुसार संजीव मुखिया इस पूरे पेपर लीक नेटवर्क की सबसे बड़ी कड़ी है. उसके खिलाफ पहले से ही NEET पेपर लीक केस में कई पुख्ता सबूत थे, लेकिन वह गिरफ्तारी से बचता रहा. अब STF और आर्थिक अपराध इकाई (EOU) की टीम उससे गहन पूछताछ कर रही है. उम्मीद है कि पूछताछ में कई राज्यों में फैले पेपर माफिया नेटवर्क का खुलासा हो सकता है.
ऐसे हुआ था NEET पेपर लीक
5 मई 2024 को देशभर में आयोजित NEET-PG परीक्षा से ठीक पहले पेपर लीक की खबर सामने आई थी. पटना के एक निजी स्कूल में छापेमारी के दौरान सॉल्वर गैंग के सदस्य कुछ छात्रों को प्रश्नपत्र रटवाते पकड़े गए थे. इसके बाद जांच में सामने आया कि पेपर लीक का यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके तार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों से भी जुड़े थे.
40 लाख में हुई थी डील
सूत्रों के अनुसार सबसे पहले पेपर संजीव मुखिया को एक प्रोफेसर के जरिए मिला था. फिर उसने बिचौलियों की मदद से उम्मीदवारों से 40-40 लाख रुपये में पेपर लीक कर डील की. अब तक इस मामले में 36 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. जिनमें उसका बेटा शिव कुमार भी शामिल है, जो खुद एक डॉक्टर है और इस गिरोह से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ था.
कौन है संजीव मुखिया?
संजीव मुखिया, जिसे “लूटन मुखिया” के नाम से भी जाना जाता है. मूल रूप से बिहार के नालंदा जिले के नगरनौसा का निवासी है. वह पहले नालंदा के नूरसराय स्थित हॉर्टिकल्चर कॉलेज में तकनीकी सहायक था. लेकिन बाद में नौकरी छोड़कर पंचायत चुनाव में मुखिया बना. वह पिछले कई सालों से परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक गिरोहों से जुड़ा रहा है. 2016 की सिपाही भर्ती परीक्षा और BPSC शिक्षक बहाली पेपर लीक केस में भी उसका नाम सामने आ चुका है. उसकी पत्नी ममता कुमारी लोजपा से हरनौत विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं. पूरे परिवार पर संगठित अपराध के गंभीर आरोप हैं. इस हाई-प्रोफाइल केस की जांच अब CBI के पास है और संजीव मुखिया की गिरफ्तारी के बाद इस घोटाले से जुड़े कई और चेहरे सामने आने की उम्मीद है. शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता बहाल करने के लिए इस केस को उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है.
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