देवघर : देवघर में शिव के साथ-साथ शक्ति की भी पूजा होती है. नवरात्र में शहर के कई ऐसे देवी मंडप हैं, जहां 500 से भी अधिक वर्षों से मां की पूजा होती आ रही है. ज्यादातर पूजा तांत्रिक विधि से होती है, जहां बलि प्रदान की महत्ता है.
बाबामंदिर के पूरब दरवाजे पर घड़ीदार घर का मंडल है. इसे घड़ी खाना भी कहते हैं. यहां की दुर्गा पूजा शहर की सबसे पुरानी पूजा मानी जाती है. घड़ीदार परिवार की ओर से यह पूजा होती आ रही है. इस मंडप में 1456 में पिंबर घड़ीदार ने पहली बार मात्र 16 आना खर्च करके मां की पूजा-अर्चना की थी. तब से उनके वंशज इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. चंडीचरण घ़ड़ीदार, तपन घड़ीदार, अमित घड़ीदार और उनके परिजन पूर्वजों की परंपरा को सहेजने में लगे हुए हैं. यहां तांत्रिक विधि से पूजा होती है और बलि प्रदान का महत्व है. यहां बिल्वभरनी पूजा नहीं होती है. दुर्गा मंडप से ही मां को निमंत्रण दिया जाता है. परंपरा के अनुसार, बिल्वभरनी पूजा के लिए कोठिया के जनार्दन राउत के वंशज जोड़ा बैल लाकर पूजा में देते हैं. मां की प्रतिमा का पूरी साज-सज्जा गोपाल ठाकुर के वंशजों द्वारा आज भी दी जा रही है.
शहर की दूसरी सबसे पुरानी पूजा श्यामाचरण मिश्र परिवार की है. यहां 1692 से दुर्गा पूजा हो रही है. इस पूजा की शुरुआत साधक स्वरूपचरण मिश्र ने की थी. तब से लेकर आज तक उनके वंशज इस परंपरा को निभा रहे हैं. बाबा मंदिर के पूरब दरवाजे के सामने गली में श्यामाचरण मिश्र परिवार के घर की वेदी बनी हुई है. इस पूजा की खासियत है कि यहां नाव पर मां भगवती का शिवगंगा तालाब में विसर्जन होता है.
भीतरखंड की दुर्गा पूजा तत्कालीन सरदार पंडा ने शुरू की थी. यहां तांत्रिक विधि से पूजा होती है, जिसमें बलि प्रधान होता है. वर्तमान में सरदार पंडा गुलाबनंद ओझा के नेतृत्व में मां की पूजा हो रही है. मंदिर कार्यालय स्थित हवन कुंड में हवन होता है. इस हवन कुंड में सभी को पूजा करने का अधिकार नहीं है. यहां मंदिर के पुजारी ही पूजा कर सकते हैं. 10 हजार कनेल के पुष्पों से हवन कुंड में हवन किया जाता है.
हरदला कुंड में मां दुर्गा की पूजा 1918 से शुरू हुई है. यहां बांग्ला पद्धति और पंचांग से मां की पूजा होती है. वैष्णव विधि से यहां पूजन की परंपरा है. वर्तमान में पूजा का आयोजन डॉ एनसी गांधी की अध्यक्षता में की जा रही है. पूजा समिति में सचिव के तौर पर समीर चौबे, सोमनाथ मजूमदार, संजय चटर्जी, असीम घोष, सुब्रतो राय, सुब्रतो देव आदि शामिल हैं.
देवसंघ स्थित नवदुर्गा मंदिर दुर्गा का अलग महत्व है. यहां महासप्तमी और महाअष्टमी को देवी दुर्गा को महास्नान कराया जाता है. सात समुद्रों से मंगाए गए जल से महास्नान कराया जाता है. वहीं ओस भी देवी को अर्पित की जाती है. वैदिकों की उपस्थिति में नारियल, गन्ना के रस और विभिन्न जगहों से मिट्टी मंगाकर उससे भी पूजा परंपरा का निर्वाह किया जाता है. महास्नान के उपरांत देवी दुर्गा का भव्य श्रृंगार किया जाता है. इस अद्भुत महास्नान को देखने के लिए देशभर के विभिन्न हिस्सों से भक्तों की भारी भीड़ देवसंघ मंदिर में आती है.
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