JoharLive Desk

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की 29वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक वहां लगातार नमाज हुई, तब तक अंदर कोई मूर्ति नहीं थी।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक वहां लगातार नमाज हुई। वहां तब तक अंदर कोई मूर्ति नहीं थी।
उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों के फैसलों के अंश के हवाले से मुस्लिम पक्ष के कब्जे की बात कही। उन्होंने कहा कि बाहरी अहाते पर ही उनका अधिकार था। लगातार और खास कब्जे का कोई प्रमाण नहीं है, जबकि एक जज ने हिन्दू पक्षकारों के अधिकार और पूजा की बात स्वीकारी है, हालांकि दोनों पक्षकारों के पास 1885 से पुराने राजस्व रिकॉर्ड भी नहीं हैं।
इससे पहले उन्होंने दलील दी, “हम राम का सम्मान करते हैं, जन्म स्थान का भी सम्मान करते हैं। इस देश में अगर राम और अल्लाह का सम्मान नहीं होगा तो देश खत्म हो जाएगा।” उन्होंने कहा कि विवाद तो राम के जन्म स्थान को लेकर है कि वह कहां है? उन्होंने कहा कि पूरी विवादित जमीन जन्म स्थान नहीं हो सकती। जैसा कि हिंदू पक्ष दावा करते हैं। कुछ तो निश्चित स्थान होगा। पूरा क्षेत्र जन्म स्थान नहीं हो सकता।
श्री धवन ने हिंदू पक्ष द्वारा परिक्रमा के संबंध में गवाहों द्वारा दी गई गवाहियां उसके समक्ष रखीं। उन्होंने हिन्दू पक्ष के गवाहो की गवाही पढ़ते हुए बताया कि परिक्रमा के बारे में सभी गवाहों ने अलग अलग बात कही है। कुछ ने कहा कि राम चबूतरे परिक्रमा होती थी, कुछ ने कहा कि दक्षिण में परिक्रमा होती थी।
मुख्य न्यायाधीश के अदालत कक्ष में सुबह साढ़े 10 बजे चार नये न्यायाधीशों के शपथ ग्रहण के कारण इस मामले की सुनवाई सवा ग्यारह बजे शुरू हुई, लेकिन समय में हुई कटौती को पूरा करने के लिए न्यायालय ने शाम को पांच बजे तक बैठने का निर्णय लिया। कुछ अपवाद को छोड़कर आमतौर पर अदालतें चार बजे तक चलती हैं, लेकिन आज चार बजे बेंच 15 मिनट ब्रेक के लिए उठ गयी और फिर शाम पांच बजे तक सुनवाई हुई।

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