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देश में हर साल कुपोषण से होती है सात लाख से ज्यादा बच्चों की मौत

JoharLive Desk

नई दिल्ली : पिछले दो दशक में कुपोषण से मौत मामले में भारत ने काफी सुधार किया है लेकिन स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई हैं। देश में सालाना करीब 14 लाख बच्चों की मौत हो रही है जिसमें से सात लाख से ज्यादा मौतें कुपोषण से हो रही हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान की स्थिति ज्यादा गंभीर है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बुधवार को कुपोषण को लेकर राज्यों के हालात पर किए अध्ययन की रिपोर्ट जारी की।
रिपोर्ट के अनुसार, देश में पांच वर्ष तक की आयु के ज्यादातर बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। जबकि बीते कुछ वर्षों से बच्चों में मोटापा भी देखने को मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में 39 फीसदी बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास कम है। इनमें से सबसे ज्यादा 49 फीसदी उत्तर प्रदेश से हैं। वहीं कम वजन की बात करें तो देश में 33 फीसदी बच्चे कम वजन से पीड़ित हैं। इसे लेकर सबसे खराब हालात झारखंड में देखने को मिल रहे हैं जहां 42 फीसदी बच्चे कम वजन के मिल रहे हैं।

देश में एनीमिया के शिकार बच्चे करीब 60 फीसदी हैं। वहीं 54 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं। दिल्ली की महिलाओं में सबसे ज्यादा एनीमिया की समस्या पाई जाती है। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि देश में कुपोषण की स्थिति में सुधार हुई है लेकिन अभी भी 5 साल से कम उम्र के बच्चों की कुपोषण से मौत हो रही है। स्थिति यह है कि करीब 50 फीसदी से ज्यादा मौत के पीछे कुपोषण ही वजह है।

उन्होंने बताया कि लगभग सभी राज्यों में कुपोषण एक बड़ी समस्या बनी हुई है। बाकी राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में मोटापा बढ़ने की दर सबसे ज्यादा है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. ललित की निगरानी में यह अध्ययन किया गया। उनके अनुसार, वर्ष 2017 में करीब 22.6 फीसदी श्वसन रोग और 13.3 फीसदी डायरिया रोग से पीड़ित थे।

बच्चे प्री डायबिटिक के हो रहे शिकार

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने बताया कि देश में एक और समस्या सामने आ रही है जिसमें बच्चे प्री डायबिटिक मिल रहे हैं। 10 से 19 वर्ष की आयु के बीच करीब नौ फीसदी बच्चे प्री डायबिटिक हैं। कई चिकित्सीय शोध में इसका खुलासा भी हो चुका है। उन्होंने कहा कि कुपोषण को दूर करने के लिए 1000 दिन कार्यक्रम पर सरकार जोर दे रही है। इसमें गर्भावस्था के नौ माह से लेकर प्रसूति के दो वर्ष बाद तक संतुलित आहार इत्यादि को लेकर लोगों को जागरूक करना शामिल है।

यूपी में प्रति एक लाख में से 60 हजार बच्चों का जीवन गंभीर चुनौतियों से घिरा

कुपोषण को लेकर राज्यों के स्तर पर पहली बार आईसीएमआर ने इस तरह का अध्ययन किया है। वर्ष 1990 से लेकर 2017 तक के हालातों पर किए इस अध्ययन को द लासेंट में प्रकाशित किया है। इसके अनुसार, उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख में से 60 हजार बच्चों का जीवन गंभीर चुनौतियों से घिरा हुआ है। वैज्ञानिकों ने इस गंभीर श्रेणी में राजस्थान, बिहार और असम को भी रखा है।

अहम तथ्य

  • 2017 में पांच वर्ष तक की आयु के 14 लाख बच्चों की मौत हुई, इसमें से 7 लाख 6 हजार की मौत कुपोषण से हुई।
  • 1990 में भारत में कुपोषण की वजह से होने वाली मौत की दर प्रति एक लाख पर 2336 थी जोकि वर्ष 2017 में घटकर 801 पर पहुंच गई है।
  • कुपोषित 54.9 फीसदी नवजात गंभीर रोगों की चपेट में आ रहे हैं।
  • कम वजन वाले करीब 84.7 फीसदी बच्चे संक्रमण, श्वास रोग इत्यादि की चपेट में आ रहे।
  • कम वजन वाले बच्चों में करीब 47 फीसदी का मानसिक व शारीरिक विकास मंद गति से हो रहा है, ये श्वास रोगों से जुड़े संक्रमण के शिकार हो रहे हैं।

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