2019 के लोकसभा चुनाव के बाद केदारनाथ में मोदी ने लगाया था ध्यान
रांची : लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का प्रचार खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मई को कन्याकुमारी में मेडिटेशन करेंगे. आखिरी चरण का चुनाव शुरू होने से पहले पीएम तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडपम में 30 मई से एक जून तक ध्यान लगायेंगे. इससे पहले 2019 में भी लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद पीएम मोदी ने केदारनाथ में ध्यान लगाया था. इस बार उन्होंने कन्याकुमारी को चुना है. रॉक मेमोरियल वही जगह है जहां 132 साल पहले 1892 में स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था. पीएम मोदी स्वामी विवेकानंद के विचारों से काफी प्रभावित हैं और वे अपने भाषणों में हमेशा स्वामी विवेकानंद की चर्चा करते हैं. इसलिए इस बार उन्होंने उसी जगह को चुना जहां स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था.
क्यों प्रसिद्ध है रॉक मेमोरियल
1892 में विश्व सर्व धर्म सभा में शामिल होने से पहले स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी गये थे. यहां समुद्र में 500 मीटर दूर पानी के बीच उन्हें एक विशाल शिला दिखी थी, वे तैरकर वहां गये और ध्यानमग्न हो गये. स्वामी विवेकानंद ने यहां तीन दिनों तक ध्यान कर विकसित भारत का दर्शन देखा था. स्वामी विवेकानंद देश भर में घूमने के बाद यहां पर 24 दिसंबर 1892 में पहुंचे थे और तीन दिनों तक (25 से 27 दिसंबर) तक इसी चट्टान पर ध्यान किया था. यहां पर उनकी आदमकद मूर्ति भी है.
श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस स्थान पर देवी पार्वती ने एक पैर पर बैठकर भगवान शिव की प्रतीक्षा की थी. इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से जाना जाता है. यहां पर कुमारी देवी के पैरों के निशान भी हैं, जो ठीक विवेकानंद रॉक मेमोरियल के सामने हैं. कन्याकुमारी में कन्या आश्रम स्थल पर एक शक्तिपीठ भी है, जहां माता सती के पीठ का भाग गिरा था. यह भी कहा जाता है कि यहां माता का ऊर्ध्व दांत गिरा था. इस शक्तिपीठ की शक्ति सर्वाणि और शिव का निमिष कहते हैं. यह शक्तिपीठ एक टापू पर है, जो चारों ओर से जल से घिरा हुआ है. यहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है.
ऐसे पड़ा कन्याकुमारी नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी और के हाथों उसका वध नहीं होगा. राजा भरत के 8 पुत्री और एक पुत्र था और उन्होंने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी सभी संतानों को दे दिया था. दक्षिण का यह हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला था. कुमारी बड़ी शिव भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं. विवाह की तैयारियां शुरू होने लग गईं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि कुमारी के हाथों वाणासुर का वध हो जाए. इस वजह से कुमारी और भगवान शिव का विवाह नहीं हो पाया था.