Joharlive Desk
बेगूसराय। जनकवि बाबा नागार्जुन ने अपनी रचना अकाल और उसके बाद में लिखा था ‘कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।’ देश के विभिन्न शहरों में कुछ ऐसे ही जलालत झेलकर घर वापस लौटे तथा लौट रहे प्रवासियों के हालातों की धरातलीय सच्चाई यही बयां कर रही है। देश में कोरोना के आक्रमक रूप पकड़ने के बाद 80 प्रतिशत से अधिक लोग घर आ चुके हैं। लेकिन यहां भी उनकी हालत बाबा नागार्जुन की कविता से बेहतर नहीं है। प्रवासियों को गांव में रोकने के लिए सरकार विभिन्न तरह की योजना चला रही है, जिसमें कुछ हजार मजदूरों को काम भी मिल रहा है। लेकिन अधिकतर लोगों को जब काम नहीं मिल रहा है तो वह फिर से शहरों की ओर लौटने लगे हैं।
मजबूरी है करें भी तो क्या करें, रोटी के लिए रोजी चाहिए, लेकिन यहां रोजी रोजगार का ठोस विकल्प नहीं मिल रहा है। शासन-प्रशासन द्वारा लोगों को उनके स्कील के अनुसार रोजगार देने की कवायद किया जा रहा है, लेकिन व्याप्त दोष के कारण समुचित रोजगार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। वैशाली एक्सप्रेस से दिल्ली से आकर सदर अस्पताल में कोरोना के लिए बुधवार को लाइन में लगे प्रमोद कुमार राय, अजय राय, संतोष कुमार आदि ने बताया कि कोरोना संक्रमण से निबटने के लिए लागू लॉकडाउन से सबसे अधिक देश की श्रमशक्ति प्रभावित हुई है। कोरोना के वायरस ने सेहत के साथ रोजगार पर गहरा चोट किया। शहरों की किस्मत गढ़ने वाले हमारे जैसे लाखों हाथ बेरोजगार हो गए, पूंजी ने मुश्किल समय में श्रम को भुला दिया तो कठोर श्रम से महानगरों के विकास की इबारत लिखने वाले श्रमिक ठगा सा खाली हाथ अपने गांव-घर लौट गए हैं।
श्रम के दिल पर पूंजी के दिए जख्म इतने गहरे हुए कि शहरों की तरफ जाने वाले मजदूरों के पांव बांध दिए हैं। फिलहाल तो हमलोगों ने ठान लिया है कि जैसे भी रहें अपना घर, अपना गांव छोड़कर शहरों का रूख नहीं करेंगे। हर कोई अब अपने परिवार के साथ रह कर गांव में ही दो जून की रोटी का जुगाड़ करने की जुगत में रहेंगे। हमें ग्रामीण योजनाओं में काम मिलने की आसा है, केंद्र और राज्य सरकारों ने भी भरण-पोषण का बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी को समझा है। बड़ी संख्या में घर लौटकर आए श्रमिक सरकारों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। इसी के मद्देनजर केंद्र से लेकर राज्य की सरकारों ने रोजगार सृजन की पहल शुरू कर दी है। गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत रोजगार की त्वरित व्यवस्था कोरोना से लड़खड़ा चुके लोगों को ना सिर्फ तत्काल सहारा मिलेगा, बल्कि भविष्य गढ़ने का रास्ता भी खुलेगा। इसके आलावा जो निर्माण कार्य होंगे, उससे गांव का विकास होगा।
आत्मनिर्भर भारत का सपना भी इससे पूरा हो सकेगा। इस दौर में केंद्र ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जो रूपरेखा तय की है, उसमें श्रमिकों का गांव में टिकना जरूरी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत गांवों में सूक्ष्म, लघु और कुटीर उद्योगों को अमलीजामा पहनाया जा सकेगा। कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना के बाद व्यापक रोजगार सृजन संभव होगा। इससे ना सिर्फ हम प्रवासियों के स्थायी रोजगार की समस्या हल होगी, बल्कि शहरों पर आश्रित गांवों के आत्मनिर्भर बनने की गति भी तेज होगी। आत्मनिर्भर भारत योजना और उसके बाद गरीब कल्याण रोजगार अभियान से गांव और प्रवासी श्रमिकों की उम्मीदों को पंख मिल सकता है। शहरों को संवारने वाले हमारे हाथ अब गांवों के विकास की इबारत लिखने का संकल्प लें चुके हैं। हम परदेसी शहरों के बदले अपने गांव-समाज, अपने जिला और राज्य के विकास का संकल्प लेकर घर लौटे हैं।