रांची : राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स में इलाज कराने के लिए झारखंड के अलावा बिहार, यूपी, बंगाल, ओडिशा से मरीज आते है. डॉक्टर मरीजों का इलाज करने के बाद उन्हें दवाएं लिखते है. लेकिन डॉक्टर दवा का नाम कैपिटल लेटर तो दूर क्लियर लिखना भूल गए है. ऐसे में दवा का नाम मेडिकल स्टोर वाले भी मुश्किल से ही पढ़ पाते हैं. वहीं कई दवाओं का नाम तो दुकानदार भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. वहीं कुछ जगहों पर दवाएं भी गलत दे रहे हैं. इतना ही नहीं प्रिस्क्रिप्शन पर गिनी चुनी जेनरिक दवाएं दिख रही है. जिसका खामियाजा रिम्स में इलाज के लिए आने वाले मरीज भुगत रहे है.

स्वास्थ्य विभाग ने दिया था आदेश

स्वास्थ्य विभाग ने 2015 में ही सभी सरकारी डॉक्टरों को आदेश जारी किया था. जिसमें दवाओं के नाम कैपिटल लेटर में लिखने को कहा गया था. वहीं दवाओं के जेनरिक ब्रांड का नाम भी लिखने को कहा गया था. जिससे कि मरीजों को भी दवा का नाम स्पष्ट पता चल जाए. लेकिन रिम्स में कुछ डॉक्टरों को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी डॉक्टरों का एक ही हाल है. उनकी लिखावट केवल मेडिकल स्टोर वाले ही पढ़ पाते है.

कागज की पर्ची में लिखते है दवा

हॉस्पिटल में एडमिट मरीजों के लिए रिम्स की पर्ची में दवा का नाम लिखकर देना है या फिर मरीजों के ट्रीटमेंट चार्ट पर. लेकिन रिम्स में मरीजों को कागज की पर्ची में नाम लिखकर थमा दिया जा रहा है. जिससे कि यह समझ पाना मृश्किल हो जाता है कि दवा रिम्स के डॉक्टर ने लिखी है या किसी और ने. इस चक्कर में मरीजों के परिजनों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

केस-1

ढाई साल के बच्चे विवान को रिम्स में दिखाया. उसमें डॉक्टर ने जो दवा लिखी वह ब्रांडेड थी. चूंकि जन औषधि केंद्र और अमृत फार्मेसी में वह दवा नहीं मिली. वहीं एक दवा का नाम ठीक से पढ़ने में नहीं आ रहा था. कई दुकानों के चक्कर लगाने के बाद वह दवा मिली.

केस-2

सिकंदर मेहता नाम के मरीज को डिस्चार्ज करने से पहले डॉक्टर ने दवाएं लिखी. वह दवा लेने पहुंचा तो सभी दवाएं ब्रांड की लिखी गई थी. जब उसने जन औषधि से उसी कंपोजिशन की दवाइयां ली तो डॉक्टर ने दवाएं वापस कर ब्रांड वाली लेने को कहा.

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