नई दिल्ली: भारतीय पैरालंपिक हाई जम्पर  मारियप्पन की प्रेरणादायक यात्रा ने  केवल भारत में खेलों को नई दिशा दी है बल्कि पूरे देश को प्रेरित भी किया है. तमिलनाडु के सलेम में 28 जून 1995 को जन्मे थंगावेलु की कहानी एक दुखद दुर्घटना के साथ शुरू हुई, जिसने उनके दाहिने पैर को स्थायी रूप से प्रभावित किया. लेकिन इस बाधा के बावजूद, उन्होंने अपनी खेल यात्रा को न केवल जारी रखा बल्कि उत्कृष्टता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

प्रारंभिक दिनों में संघर्ष और सफलता

थंगावेलु की एथलेटिक्स में रुचि उनके स्कूल के दिनों में तब जगी जब एक शारीरिक शिक्षा शिक्षक ने उन्हें ऊंची कूद के लिए प्रेरित किया. उनकी प्रतिभा की पहचान जल्दी ही हो गई और उन्होंने 14 साल की उम्र में सक्षम एथलीटों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा की, जिसमें उन्होंने दूसरे स्थान पर रहते हुए अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया.

ऐतिहासिक उपलब्धियां

थंगावेलु की कड़ी मेहनत और लगन का फल तब मिला जब उन्होंने 2015 IPC विश्व चैंपियनशिप में कतर के दोहा में स्वर्ण पदक जीता. यह उपलब्धि उनके लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई और 2016 रियो पैरालिंपिक में उनके ऐतिहासिक प्रदर्शन के लिए एक मजबूत मंच तैयार किया. रियो 2016 में, थंगावेलु ने पुरुषों की हाई जम्प टी-42 श्रेणी में 1.89 मीटर की छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीतने के साथ-साथ भारत को पैरालिंपिक में हाई जम्प में पहला स्वर्ण पदक दिलाया. उनकी इस जीत ने उन्हें राष्ट्रीय नायक बना दिया और भारत में पैरा-एथलीटों की क्षमता को उजागर किया, जिससे विकलांग खेलों के लिए मान्यता और समर्थन में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ.

पेरिस 2024 की तैयारी

अब, पेरिस 2024 पैरालिंपिक के नजदीक आते ही, थंगावेलु अपनी विरासत को और भी मजबूत बनाने के लिए तैयार हैं. खेल 28 अगस्त से 8 सितंबर 2024 तक होंगे और थंगावेलु इस बार भारत द्वारा भेजे गए 84 एथलीटों के दल में शामिल होंगे. यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा पैरालंपिक दल है और थंगावेलु की भागीदारी इस दल की प्रमुख ताकत साबित हो सकती है. थंगावेलु की प्रेरणादायक यात्रा और उनके आगामी मुकाबले के लिए तैयारियों पर नज़र रखते हुए, पूरे देश की नजरें पेरिस 2024 पर टिकी हुई हैं, जहां वे एक बार फिर अपने अद्वितीय खेल कौशल से सबको प्रभावित करने के लिए तैयार हैं.

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