Joharlive Team
रांची. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने मंगलवार को अपना घोषणा पत्र जारी किया। घोषणापत्र में वर्तमान सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का भी जिक्र है। यही नहीं घोषणापत्र में कई दावे ऐसे हैं जिन्हें पूरा करना असंभव है। झामुमो के घोषणापत्र जारी होने के बाद बिंदुवार इसका विश्लेषण जोहर लाइव टीम ने किया। घोषणापत्र में कई चीजें नई बोतल में पुरानी शराब जैसी हैं। शहीद के परिजनों को नौकरी देने की बात भी घोषणापत्र में है। सच्चाई यह है कि सरकार अभी भी शहीद के परिजनों को नौकरी, बच्चों को निशुल्क शिक्षा, शहीद के बुजुर्ग मां- पिता को भी भत्ता, शहीद के बचे हुए कार्यकाल का पूरा वेतन आश्रितों को दे रही है।
पारा टीचरों को लुभाने को कोशिश, लेकिन खरा खरा कुछ नहीं
झारखंड में हाल के दिनों में पारा टीचरों का मुद्दा काफी गरम रहा है। सरकार को पारा टीचर्स के मुद्दे पर विपक्ष ने घेरने की कोशिश लगातार ही की है। झामुमो ने पारा शिक्षकों की सेवा शर्त और वेतनमान निर्धारण की बात कही है। खास बात ये है कि झारखंड की भाजपा सरकार भी सेवा शर्त और वेतनमान के निर्धारण के लिए कमिटी बना चुकी है। इस कमिटी ने पारा शिक्षकों से सुझाव भी मांगा था। अब तक 3500 सुझाव आ चुके हैं। इन्हीं सुझावों के आधार पर पारा शिक्षकों के वेतनमान और सेवा शर्तों का निर्धारण होगा। मतलब साफ है घोषणापत्र में वही है जो सरकार कर चुकी है, यानी झामुमो के पास पारा शिक्षकों को लेकर अपना कोई प्लान नहीं है।
स्थानीयता नीति बदलेंगे , लेकिन 32 के खतियान पर टाल मटोल
हेमंत सोरेन ने ऐलान किया है कि सरकार बनी तो स्थानीयता नीति बदली जाएगी। झामुमो पूर्व में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति लागू करने की पक्षधर रही है। लेकिन घोषणापत्र जारी करने के दौरान हेमंत सोरेन से जब 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि नीति जनभावना के अनुरूप होगी। उन्होंने अपनी नीति स्पष्ट नहीं की कि सरकार 1932 के खतियान को आधार बनाएगी या कोई दूसरा विकल्प झामुमो अपनाएगी।
नौकरी में आरक्षण के मुद्दे पर भी सवाल
झारखंड की सरकार दावा करती है कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में शत प्रतिशत नौकरियां स्थानीय युवाओं को मिली है। अब झामुमो के घोषणापत्र में 75 फीसदी स्थानीय लोगों को नौकरी देने की बात कही है, तो क्या 25 फीसदी नौकरियां बाहरियों को दी जाएंगी।
कांग्रेस का नाकारा हुआ NYAY झामुमो के घोषणापत्र में
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने न्याय योजना का ऐलान अपने घोषणापत्र में किया था। इसमें हर गरीब परिवार को 72 हजार सालाना सुनिश्चित किये जाने की बात थी। लोकसभा में कांग्रेस के इस दावे को जनता नकार चुकी है। झामुमो ने अपने घोषणापत्र में इस योजना को कट कॉपी पेस्ट कर जगह दी है।
संविधान के प्रावधान के अनुरूप नहीं है आरक्षण का ऐलान
झामुमो ने अपने घोषणापत्र के जरिये जातिगत समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की है। झामुमो में आदिवासियों को 28 फीसदी, ओबीसी को 27 फीसदी और दलितों को 12 प्रतिशत आरक्षण का ऐलान घोषणापत्र में किया है। लेकिन आरक्षण की इस नीति को लागू करना मुमकिन ही नहीं है। झारखंड संविधान के पांचवी अनुसूची में है। इस अनुसूची में शामिल राज्यों में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। लेकिन झामुमो ने अपने घोषणापत्र में 67 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है।
बेरोजगारों को भत्ता दिया तो 5 साल का बजट एक साल में भत्ता देने में ही होगा खर्च
झामुमो ने राज्य के बेरोजगार युवाओं को 5 से 7 हजार भत्ता देने की बात कही है। प्रत्येक साल साढ़े तीन लाख से अधिक युवा दसवी की परीक्षा पास करते हैं । स्नातकों को 5000 और स्नातकोत्तरों को 7000 रुपये का मासिक भत्ता सालाना दिया तो साल भर का बजट ही डेढ़ से दो लाख करोड़ को होगा। साल भर का ये बजट झारखंड के पांच साल के बजट के बराबर है।
किसानों की कर्ज माफी आसान नहीं
मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसानों के कर्जमाफी के मामले को कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जगह दी थी। सरकार बनने के बाद वहां किसानों के कर्ज माफी की कवायद पूरी नहीं हो पाई। इन तीनो राज्यों में आज भाजपा इस मामले को जोर शोर से उठाती है। तकनीकी वजहों से किसानों की पूरी कर्ज माफी करना संभव नहीं हो पाता। राहत मिली भी तो यह हज़ार दो हज़ार रुपये से अधिक नहीं थी।
इन बातों को शामिल करने की बात समझ से परे
- झारखंड आंदोलनकारियों को चिन्हित कर पेंशन देने की बात झामुमो ने कही है। आंदोलनकारियों को अब भी पेंशन दिया जा रहा है। इसमें कोई नई बात नहीं है।
- आवास के लिए 3 लाख देने का ऐलान किया गया है। इस योजना के तहत झारखंड में बड़ी आबादी लाभान्वित हो चुकी है। पहले से ही योजना चल रही है।