10 सितंबर को देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जा रहा है. गणेश उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तक आयोजित किया जाता है. इसके बाद चतुर्दशी को भगवान गणेश का विसर्जन किया जाता है. कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन गणपति भगवान का जन्म हुआ था. इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है. 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का समापन 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा.
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भगवान गणेश की कृपा से सुख-शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन व्यक्ति को काले और नीले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए. इस दिन लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है.
उत्तरी पूर्वी कोने में रखें गणेश जी की मूर्ति
गणेश जी की मूर्ति घर के उत्तरी पूर्वी कोने में रखना सबसे शुभ माना जाता है. ये दिशा पूजा-पाठ के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है. इसके अलावा आप गणेश जी की प्रतिमा को घर के पूर्व या फिर पश्चिम दिशा में भी रख सकते हैं. गणेश जी की प्रतिमा रखते समय इस बात का ध्यान रखें कि भगवान के दोनों पैर जमीन को स्पर्श कर रहे हों. मान्यता है इससे सफलता मिलने के आसार रहते हैं, गणेश जी की प्रतिमा को दक्षिण दिशा में न रखें.
2 घंटे 30 मिनट का है शुभ मुहूर्त
इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त मध्याह्र काल में 11:03 से 13:33 तक है. यानी 2 घंटे 30 मिनट तक है. वहीं, चतुर्थी तिथि की शुरुआत शुक्रवार, 10 सितंबर को 12:18 से और चतुर्थी तिथि की समाप्ति शुक्रवार रात 21:57 तक बजे तक बताई गई है. इस दिन भक्तों को चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से आप पर झूठा आरोप या कलंक लग सकता है. देश मे कई जगहों पर गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी, कलंक चौथ और पत्थर चौथ के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन रात 9 बजकर 12 मिनट से सुबह 8:53 तक चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए.
बन रहा रवियोग
गणेश चतुर्थी पर इस बार रवियोग में पूजा किया जाएगा. इस बार चतुर्थी पर चित्रा- स्वाति नक्षत्र के साथ ही रवि योग बन रहा है. चित्रा नक्षत्र शाम 4.59 बजे तक रहेगा और इसके बाद स्वाति नक्षत्र लगेगा. वहीं 9 सितंबर दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर 12 बजकर 57 मिनट तक रवियोग रहेगा, जो कि उन्नति को दर्शाता है. इस शुभ योग में कोई भी नया काम और गणपति पूजा मंगलकारी होगी.
भगवान गणेश को तुलसी का न लगाएं भोग
गणेश जी को पूजन करते समय दूब, घास, गन्ना और बूंदी के लड्डू अर्पित करने चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं. कहते हैं कि गणपति जी को तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए. मान्यता है कि तुलसी ने भगवान गणेश को लम्बोदर और गजमुख कहकर शादी का प्रस्ताव दिया था, इससे नाराज होकर गणपति ने उन्हें श्राप दे दिया था.
चंद्रमा को दिया था श्राप
इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार गणेश अपने मूषक पर सवार होकर खेल रहे थे. तभी अचानक मूषक को सर्प दिखा. जिसे देख वह भय के मारे उछल पड़े और उनकी पीठ पर सवार गणेश जी का संतुलन बिगड़ गया. गणेश जी ने तभी मुड़कर देखा कि कहीं उन्हें कोई देख तो नहीं रहा है. रात्रि के कारण आस-पास कोई भी मौजूद नहीं था. तभी अचानक जोर जोर से हंसने की आवाज आई. ये आवाज किसी और की नहीं, बल्कि चंद्र देव की थी. चंद्रदेव ने गणपति महाराज का उपहास उड़ाते हुए कहा कि छोटा सा कद और गज का मुख. चंद्र देव ने सहायता करने के बजाए विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी का उपहास उड़ाया. यह सुनते ही गणेश जी क्रोधित हो उठे और चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि, जिस सुंदरता के अभिमान के कारण तुम मेरा उपहास उड़ा रहे हो, वह सुंदरता जल्द ही नष्ट हो जाएगी.
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना अशुभ
भगवान गणेश जी के श्राप के कारण चंद्रदेव का रंग काला पड़ गया और पूरे संसार में अंधेरा हो गया. तब सभी देवी देवताओं ने मिलकर गणेश जी को समझाया और चंद्रदेव ने अपने कृत्य के लिए माफी मांगी. चंद्रदेव को क्षमा करते हुए गणेश जी ने कहा कि मैं अपना दिया हुआ श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन महीने में एक दिन आपका रंग पूर्ण रूप से काला होगा और फिर धीरे धीरे प्रतिदिन आपका आकार बड़ा होता जाएगा. वहीं, माह में एक बार आप पूर्ण रूप से दिखाई देंगे. कहा जाता है कि तभी से चंद्रमा प्रतिदिन घटता और बढ़ता है. कहा यह भी जाता है कि गणेश जी ने कहा कि मेरे वरदान के कारण आप दिखाई अवश्य देंगे, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन जो भी भक्त आपके दर्शन करेगा उसे अशुभ फल की प्राप्ति होगी.
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