जामताड़ा: लोकसभा चुनाव के लिए सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी विकास का दंभ भरते हुए इस चुनावी मैदान में फिर से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. दो दिन बाद शनिवार को अंतिम चरण का मतदान होना है. इस अंतिम चरण में दुमका लोकसभा अंतर्गत जामताड़ा जिले के दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा. मतदान से ठीक एक दिन पहले जिला मुख्यालय से सटे पथलचापड़ा आदिवासी टोला के लोगों ने मतदान करने से इनकार कर दिया है. सदर प्रखंड के गोपालपुर पंचायत का यह छोटा सा टोला शहर के एकमात्र पर्यटन स्थल पर्वत बिहार के ठीक पीछे स्थित है. आपको बता दें कि आज तक न तो जिला प्रशासन और न ही राज्य सरकार इस गांव में पेयजल की समुचित व्यवस्था कर पाई है. गांव के लोग दशकों से जोरिया और डोभा से पानी खींचकर पीते आ रहे हैं. आज जहां हर तरफ विकास की चकाचौंध बढ़ रही है, वहीं शहर के बीचों-बीच बसे इस छोटे से आदिवासी टोले में लोगों को पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाया है.
70 मतदाता है इस टोले में
22-25 घरों वाले इस टोले में 70 से अधिक मतदाता हैं. इस भीषण गर्मी में लोगों को पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. पुरुषों से ज्यादा महिलाएं इस समस्या से त्रस्त हैं. पानी की इस विकट समस्या को लेकर महिलाओं में ज्यादा गुस्सा है. महिलाओं का कहना है कि कोई भी चुनाव हो किसी भी पार्टी के नेता या स्थानीय कार्यकर्ता बमुश्किल ही इस गांव में पहुंचते हैं. हर 5 साल में कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा चुनाव की घंटी बजती है. हर बार हम लोग जिला प्रशासन को इस चिरपरिचित समस्या से अवगत कराते हैं और हर बार महज औपचारिकता निभाकर छोड़ दिया जाता है. टोले से काफी दूर जंगल क्षेत्र में कुछ साल पहले एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब लोगों की जरूरतों को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है.
स्थिति यह है कि इस भीषण गर्मी में लोग इस टोले से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कटंकी पॉलिटेक्निक कॉलेज के परिसर में लगे हैंडपंप से पानी लाने जाते हैं. मवेशियों के लिए आस-पास कोई पानी का स्रोत नहीं है. लोग कहते है कि हम अपनी प्यास बुझाएं या इतनी दूर से पानी लाकर मवेशियों को पिलाएं. ग्रामीण प्राण किस्कू ने कहा कि पहले हम लोग जोरिया के पास तालाब बनाकर पीने के पानी की व्यवस्था करते थे. अब जोरिया में ही पानी नहीं है, तो तालाब में पानी कहां से जुटाएंगे. स्थिति ऐसी है कि हमें पूरी तरह से हैंडपंप पर निर्भर रहना पड़ता है. कभी किसी हैंडपंप से पानी आता है तो कभी नहीं आता. ऐसे में हमें पानी की जरूरत पूरी करने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. प्राण किस्कू ने कहा कि जब हमें इतना दर्द सहकर जीना पड़ेगा, तो वोट किसे देंगे. इसलिए हमें लगता है कि वोट देने की जरूरत ही नहीं है.