Joharlive Team
रांची। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का आज 73वां जन्मदिन है। अपने पिता का जन्मदिन मनाने के लिए तेजस्वी यादव देर रात रांची पहुंच गए हैं। लालू यादव चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं और फिलहाल रिम्स में इलाजरत हैं। तेजस्वी रिम्स में ही केक काटकर उनका जन्मदिन मनाएंगे।
लालू यादव 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने 2004 से 2009 तक रेल मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला है। 15वीं लोक सभा के दौरान वो सारण से सांसद थे।_*
1997 में जब केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने उनके खिलाफ चारा घोटाला मामले में आरोप-पत्र दाखिल किया, तो लालू यादव को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। जिसके बाद इन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंप दी और आरजेडी के अध्यक्ष बन गए। हालांकि परोक्ष रूप से सत्ता की कमान अपने हाथ में ही रखी। इस दौरान चारा घोटाला मामले में लालू यादव को जेल भी जाना पड़ा और वे कई महीने तक जेल में रहे।
_पिछले लोकसभा चुनाव में लालू की पार्टी आरजेडी को एक भी सीट नहींं मिली। ये चुनाव नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा गया था। लालू की तीन दशक की राजनीति में उनकी पार्टी की पहली बार ऐसी करारी हार हुई थी। जिसमें पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल सकी।
कुछ महीने पहले झारखंड में जिस तरह से बीजेपी को पछाड़कर महागठबंधन ने वहां सत्ता हासिल की है, उसमें हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव का भी एक अहम रोल रहा है। महागठबंधन को एकजुट रखने में सबसे बड़ी भूमिका लालू यादव की ही रही है और ये सब कारनामा लालू ने जेल में रहते हुए ही किया है।
अपने चिर-परिचित अंदाज से अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले देश के जाने-माने नेता और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव का आज 73वां जन्मदिवस है। उनका राजनीतिक जीवन कई उतार चढ़ाव से भरा रहा है।
केंद्र में कभी ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने वाले लालू आज उस बिहार से करीब 350 दूर झारखंड की राजधानी रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं, जहां उनकी खनक सियासी गलियारे से लेकर गांव के गरीब-गुरबों तक में सुनाई देती थी।
बिहार की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले संतोष सिंह की चर्चित पुस्तक ‘रूल्ड ऑर मिसरूल्ड द स्टोर एंड डेस्टीनी ऑफ बिहार’ में कहा गया है कि बिहार में ‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद लालू प्रसाद ने उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेता के रूप में पहचान बनाई और इसमें उन्होंने काफी सफलता भी पाई। सिंह कहते हैं कि उन्होंने गरीबों के बीच जाकर खास पहचान बनाई और गरीबों के नेता के रूप में खुद को स्थापित किया।
किताब में कहा गया है, ‘भागलपुर दंगे के बाद मुस्लिम मतदाता जहां कांग्रेस से बिदककर आरजेडी की ओर बढ़ गए। वहीं, यादव मतदाता स्वजातीय लालू को अपना नेता मान लिया।’ इस बीच, नीतीश कुमार ने भी नए ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का तानाबाना बुनकर उसमें सुशासन और विकास को जोड़ते हुए बीजेपी से गठबंधन कर बिहार की सत्ता से लालू को उखाड़ फेंका।
राजनीतिक जानकार कहते हैं, ‘लालू प्रसाद का वह स्वर्णिम काल था। इस समय में वह किंगमेकर तक की भूमिका में आ गए थे। हालांकि 1997 में चारा घोटाला मामले में आरोपपत्र दाखिल हुआ और 2013 में लालू को जेल भेज दिया गया। उसके बाद उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई। इसके बाद बिहार के लोगों को विकल्प के तौर पर नीतीश कुमार मिल गए। जब मतदाता को स्वच्छ छवि का विकल्प उपलब्ध हुआ तो मतदाता उस ओर खिसक गए।
हालांकि, बिहार की सियासत में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की बनती-बिगड़ती हैसियत पिछले 30 वर्षों से चर्चा में रही है। लालू के जेल जाने के बाद दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप में विरासत की लड़ाई शुरू हो गई। हालांकि, लालू-पुत्र तेजस्वी यादव के कथित राजनीतिक उदय पर अपने सिर के बाल नोचने लगे है।
वक्त के साथ नीतीश सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री 20 महीनों तक सरकार चलाने के तौर तरीक़े देखते-समझते रहे तेजस्वी यादव काफी कुछ सीख चुके हैं। इधर, विधानसभा चुनाव की आहट के बीच जेल से ही लालू ने नया नारा दे दिया है, *’दो हज़ार बीस, हटाओ नीतीश।