स्वामी दिव्यज्ञान

रांची : लोकसभा चुनाव को लेकर झारखंड में कांग्रेस ने गोड्डा, चतरा और धनबाद सीट पर प्रत्याशियों के नामों पर मुहर लगा दी है. पार्टी के घोषणापत्र जारी करने पर कई लोग राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के लिए आशान्वित थे. लेकिन एक पहलू जिसने अल्पसंख्यक समुदाय के बीच चिंता और निराशा बढ़ा दी है, वह है कांग्रेस के टिकट वितरण में प्रतिनिधित्व की कमी.

अल्पसंख्यक उम्मीदवार नहीं खड़े करने पर उठ रहे सवाल

घोषणा पत्र में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए कई वादे शामिल हैं, पार्टी की उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व के मुद्दे को संबोधित करने में विफल रहा है. नतीजतन, झारखंड में कांग्रेस या इंडिया गठबंधन के टिकट पर कोई अल्पसंख्यक उम्मीदवार नहीं हैं. इस कदम ने अल्पसंख्यक समावेशन और प्रतिनिधित्व के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

अल्पसंख्यक समुदाय में नाराजगी

गोड्डा निर्वाचन क्षेत्र से आलमगीर आलम और फुरकान अंसारी का है. आलम और अंसारी दोनों कांग्रेस के टिकट के प्रबल दावेदार थे, लेकिन अंततः उन्हें टिकट नहीं मिला. यह निर्णय क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय को पसंद नहीं आया है, जो अपनी ही पार्टी से अपमानित महसूस कर रहे हैं.

धनबाद निर्वाचन क्षेत्र में मन्नान मलिक को नहीं मिला मौका

इसी तरह, धनबाद निर्वाचन क्षेत्र में मन्नान मलिक, जिन्हें कांग्रेस टिकट के लिए लोकप्रिय पसंद माना जा रहा था, उन्हें भी चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया गया. मलिक, जो अल्पसंख्यक समुदाय के एक प्रमुख नेता हैं, पार्टी के लिए एक मजबूत उम्मीदवार हो सकते थे. उम्मीदवार सूची से उनके बाहर होने से कई लोगों को निराशा हुई है.

खूंटी सीट से दयामनी बारला और डॉ. प्रदीप बलमुचू के भी हाथ खाली

इसके अलावा खूंटी सीट पर दयामनी बारला और डॉ. प्रदीप बलमुचू ( दोनों ईसाई समाज से ) को भी कांग्रेस से टिकट मिलने की उम्मीद थी. बारला और बलमुचू दोनों ही अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर सम्मानित नेता हैं और अगर उन्हें चुनाव लड़ने का मौका दिया गया तो उनके जीतने की बहुत अधिक संभावना है. हालांकि, उम्मीदवारों की अंतिम सूची से उनके नाम भी गायब थे.

कांग्रेस की हो रही आलोचना

कांग्रेस के टिकट वितरण में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व की कमी से समुदाय में आक्रोश फैल गया है. कई लोगों का मानना ​​है कि पार्टी ने अल्पसंख्यक वोट बैंक को पर्याप्त महत्व नहीं दिया है और इसके बजाय गैर-अल्पसंख्यक मतदाताओं को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया है. कांग्रेस के इस कदम की भी अल्पसंख्यक कल्याण की दिशा में काम करने के बजाय बहुसंख्यक समुदाय से वोट हासिल करने के रणनीतिक कदम के रूप में आलोचना हो रही होगी अल्पसंख्यक ईसाई एवं मुस्लिम समुदाय में.

अल्पसंख्यक समुदाय की निराशा और निराशा समझ में आती है. झारखंड बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी का घर है, और उनकी आवाज़ और चिंताओं को राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में सुना जाना चाहिए और उनका प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए. टिकट वितरण से अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को बाहर रखने से न केवल उनका महत्व कम होता है बल्कि उनकी जरूरतों और मुद्दों के प्रति उपेक्षा और उदासीनता का गलत संदेश भी जाता है.

हानिकारक साबित हो सकता है अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को टिकट नहीं देना

इसके अलावा, योग्य अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को टिकट देने से इनकार करके, कांग्रेस ने अल्पसंख्यक समुदाय का विश्वास और समर्थन जीतने का एक मौका भी गंवा दिया है. ऐसे राज्य में जहां हर वोट मायने रखता है, आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को अलग-थलग करना आगामी चुनावों में पार्टी की संभावनाओं के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.

झारखंड में टिकट वितरण में किसी भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार को शामिल नहीं करने के कांग्रेस के फैसले से अल्पसंख्यक समुदाय में निराशा और गुस्सा पैदा हुआ है. यह कदम न केवल अल्पसंख्यक कल्याण के लिए पार्टी के अपने वादों के खिलाफ है, बल्कि राज्य में उनकी जीत की संभावनाओं को भी बाधित करता है.

 

Share.
Exit mobile version