झारखंड

जानिए देवघर बाबाधाम का ‘पंचशूल’ क्यों है खास, छिपे हैं इनमें कई रहस्य, मात्र दर्शन से ही होती है मनोकामना पूरी

देवघर : देवघर का बैद्यनाथ धाम (बाबाधाम) देश के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. यहां से जुड़ी अनगिनत विशेषता व मान्यताएं है. मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, ‘पंचशूल’ है, जिसे सुरक्षा कवच माना गया है. आइए आज बात करते है मंदिर की सुरक्षा कवच के बारे में या कहें तो “पंचशूल” के बारे में-

यहां लगा है ‘पंचशूल’

आमतौर पर शिव मंदिरों के शीर्ष पर हम सबने त्रिशूल लगा हुआ देखा होगा, लेकिन देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में पंचशूल लगा हुआ है. मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में आपको त्रिशूल की जगह पंचशूल देखने को मिलेंगे. मान्यता है कि यह सुरक्षा कवच है. मुख्य मंदिर में स्वर्ण कलश के ऊपर लगे पंचशूल सहित यहां बाबा मंदिर परिसर के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार शिवरात्रि के दिन पूरे विधि-विधान से नीचे उतारा जाता है और सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा कर फिर से वहीं स्थापित कर दिया जाता है.” गौरतलब बात है कि पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार एक ही स्थानीय परिवार को प्राप्त है.

“पंचशूल” को लेकर ये है मान्यताएं

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर पंचशूल को लेकर मान्यता है कि त्रेता युग में रावण की लंका पुरी के प्रवेश द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में पंचशूल भी स्थापित किया गया था और सिर्फ रावण ही पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना जानता था. भगवान राम के लिए भी पंचशूल के भेद पाना असंभव था, लेकिन विभीषण ने जब इसका रहस्य उजागर कर दिया तो भगवान श्री राम और उनकी सेना ने लंका में प्रवेश किया. मान्यता है कि पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई है.

वहीं कई धर्माचार्यो का मानना है कि पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह व ईष्र्या को नाश करने का प्रतीक है. पंचशूल पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक है. मान्यता है कि यहां आने वाला श्रद्धालु अगर बाबा के दर्शन किसी कारणवश न कर पाए, तो मात्र पंचशूल के दर्शन से ही उसे समस्त पुण्यफलों की प्राप्ति हो जाती है.

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