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जानें 29 फरवरी को ही क्यों मनाया जाता है LEAP YEAR

Leap Year 2024 : 2024 का साल लीप ईयर है, फरवरी का महीना 29 दिन का है. अब बड़ा सवाल यह है कि लीप ईयर क्या होता है? कभी सोचा है कि हर चार साल बाद फरवरी में 29 तारीख क्यों आती है? क्या ये एक गलती है या फिर इसके पीछे वाकई कुछ विज्ञान है?

दरअसल, दुनिया में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे विज्ञान जरूर होता है. हर 4 साल बाद फरवरी में 29 की तारीख इसलिए आती है, ताकि हमारा कैलेंडर ईयर सोलर ईयर से मेल खा सके. आमतौर पर माना जाता है कि यह पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा से जुड़ा हुआ है. लेकिन ये सही नहीं है. और इसी को ठीक करने के लिए फरवरी महीने में 29 की तारीख जोड़ी गई. इस बारे में आगे बढ़े, उससे पहले ये भी जान लेते हैं कि सदियों पहले फरवरी 28 या 29 की नहीं हुआ करती थी. तब फरवरी भी 30 दिन का महीना हुआ करता था. लेकिन रोमन सम्राट सीजर ऑगस्टस के घमंड के कारण ये 28 दिन की हो गई.

फरवरी ऐसे बना सबसे छोटा महीना

इसके लिए इतिहास में जाना होगा. ईसा के जन्म से 46 साल पहले रोमन सम्राट जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर नया कैलेंडर तैयार किया. इस कैलेंडर में 12 महीने थे.

44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर की हत्या हो गई. उनके सम्मान में कैलेंडर के सातवें महीने का नाम जुलाई रखा गया. जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे. जूलियस सीजर के बाद सीजर ऑगस्टस सम्राट बने. उनके नाम पर आठवें महीने का नाम अगस्त पड़ा.

अब ऑगस्टस को इस बात से चिढ़ थी कि जूलियस सीजर के नाम पर रखे गए जुलाई महीने में 31 दिन थे, लेकिन उनके नाम पर रखे गए अगस्त महीने में 29 ही दिन हुआ करते थे.

ऑगस्टस ने अगस्त को भी जुलाई के बराबर बनाने की ठान ली. और कैलेंडर में बदलाव कर दिया. इस तरह अगस्त महीने में 31 दिन हो गए. और फरवरी में 28 दिन हो गए.

इसलिए बढ़ा हर 4 साल में 1 दिन

रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन था. जूलियस सीजर के सम्राट बनने से पहले तक जो कैलेंडर था, उसमें 355 दिन हुआ करते थे. तब सोलर ईयर से कैलेंडर ईयर को मेल करने के लिए हर दो साल में 22 दिन जोड़े जाते थे.

लेकिन इससे कई सारी समस्याएं होने लगीं. फिर जूलियस सीजर ने नए सिरे से गणनाएं करवाईं. इसमें सामने आया कि पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है. इसलिए कैलेंडर को 365 दिन का कर दिया गया.

इसके साथ ही जूलियस सीजर ने खगोलशास्त्री सोसिजेनेस को ये अतिरिक्त घंटे का समाधान करने को कहा. उन्होंने सुझाव दिया कि हर चार साल में एक दिन बढ़ा दिया जाए. और इस तरह से हर चार साल बाद 366 दिन का एक कैलेंडर ईयर बना.

आखिरकार ऐसे निकला तोड़

कैलेंडर पर लगातार काम होता रहा. 15वीं सदी में रोमन चर्च के पोप ग्रेगोरी 13वें ने फिर नए सिरे से कैलेंडर पर काम शुरू किया. उन्होंने अपनी गणना में पाया कि पृथ्वी को सूर्य का चक्कर पूरा करने में 365 दिन 6 घंटे का वक्त नहीं लगता है. बल्कि पृथ्वी 365 दिन, 5 घंटे, 46 मिनट और 48 सेकंड में सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है. उन्होंने पाया कि इस वजह से हर 400 साल में समय तीन दिन पीछे हो रहा था. ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय 10 दिन पीछे हो चुका था.

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