क्रोध इंसान के विनाश का कारण बनता है। यह पतन का भी कारण बनता है। यह मुख्य रूप से कुण्डली के प्रथम, दूसरे सप्तम और अष्ठम भाव से देखा जाता है। गुस्से का सम्बन्ध कुंडली के प्रथम भाव से अधिक है।अगर कुंडली के प्रथम भाव मे समस्या हो तो व्यक्ति गुस्सेल होगा. उदाहरण के लिए नीच का शनि , ख़राब राहू या केतु व्यक्ति को जिद्दी और गुस्सेल बना देता है।
इसके अलावा जब –जब नकारात्मक या पापी ग्रह महादशा, अन्तर्दशा मे आते है तो भी व्यक्ति कुछ समय के लिए गुस्सेल हो जाता है।
परन्तु इसे कन्ट्रोल करना चाहिए।।
ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाये तो क्रोध के मुख्य कारण मंगल, सूर्य, शनि, राहु तथा चंद्रमा होते हैं।
इनमें से यदि मंगल ग्रह सूर्य (पहचान और सहनशक्ति) और चंद्रमा (शारीरिक और भावनात्मक जरूरत) के समान व्यवहार कर सकता है, यदि जन्मकुंडली में सूर्य और चंद्रमा, मंगल ग्रह से संबंधित हो तो क्रोध व्यक्त करने में कामयाब हो जाता है।
सामान्य तौर पर एक छोटा लक्षण भी लंबे समय के क्रोध के लिए काफी होता है। क्रोध, आलोचना और बौद्धिक/ सामाजिक श्रेष्ठता की भावना की ओर ले जाता है।
अभिव्यक्ति ज्ञान के साथ संतुलित होती है।
मंगल ग्रह का शनि या राहु से युति गुस्से को नियंत्रित करने में असमर्थ होती है। यह अत्यधिक विघटन का भाव पैदा कर सकते हैं।
जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं।
अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है।
राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस कारण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, क्रोध अग्नि तत्व द्वारा द्योतक है। अग्नि तत्व के साथ संबंधित ग्रहों और राशियों के नकारात्मक या विपरीत होने से संबंधित व्यक्ति प्रतिकूल ग्रहों की अवधि के दौरान, अत्यधिक क्रोध करता है।
मंगल के साथ नीच चंद्रमा घरेलु शांति के लिए शुभ नहीं है. दूसरे घर (तीसरे और छठे घर के स्वामी) और मंगल / शनि के कारण जातक का स्वभाव अपने कैरियर में गंभीर समस्याओं का सामना कराता है।
वे सभी जातक जिनकी कुंडली मे मंगल राहु और शनि ज़्यादा प्रभावित होते है वो लोग ज़्यादा झगड़ा करते है ।
यदि मंगल के साथ राहु होगा तो ज़्यादा झगड़ा करते है ।
यदि कुंडली में शनि कमज़ोर होगा तो भी झगड़ा करते है ।
राहु शरीर मे गर्मी बढ़ाता है ।
यदि चंद्रमा लग्र में या तीसरे स्थान में मंगल, शनि या केतु के साथ युत हो तो क्रोध के साथ चिडचिडापन देता है। वहीं यदि सूर्य मंगल के साथ योग बनाये तो अहंकार के साथ क्रोध का भाव आता है।
मंगल शनि की युति क्रोध जिद के रूप में व्यक्त होती है। राहु के लग्र, तीसरे अथवा द्वादश स्थान में होने पर काल्पनिक अहंकार के कारण अपने आप को बडा मानकर अंहकारी बनाता है जिससे क्रोध उत्पन्न हो सकता है।
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा राँची
9031249195