सत्य शरण मिश्रा
रांची : राजधानी रांची ने पिछले दो दशक में विकास की दौड़ में तेज छलांग लगाई है. शहर के चारों तरफ बहुमंजिली इमारतें, बड़े-बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मॉल, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस सरकारी दफ्तरों के बिल्डिंग बने, लेकिन विकास की इस रफ्तार को मुंह चिढ़ा रहा है रांची का बड़ा तालाब. इसमें इस तालाब की गलती नहीं है. गलती है सरकार की. नगर निगम की और तालाब में कचरा फेंककर उसे गंदा करने वाले लोगों की. पिछले 15 दिनों से तालाब से उठ रही बदबू से आसपास के मुहल्ले के दर्जनों लोग गश खाकर बेहोश हो चुके हैं, लेकिन आम लोग मजबूर हैं. मजबूर नगर निगम भी है. समय रहते उसने ध्यान नहीं दिया और अब जब स्थिति नारकीय हो गई तो वह सफाई का ढोंग कर रहा है. पिछले 4 दिन से सफाई चल रही है, लेकिन बदबू से राहत नहीं मिली है. बदबू इतनी है कि सफाई करने पहुंच मजदूर भी बेहोश होने लगे.
नगर आयुक्त अमित कुमार भी अपने अधिकारियों के साथ बड़ा तालाब का निरीक्षण करने पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया. जोहार लाइव से बातचीत में उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों की लगातार शिकायतें आ रही थी उसे देखते हुए तालाब की सफाई के लिए हार्वेस्टर मशीन लगा दी गई है. गंदगी को लेकर वही पुराना रटा-रटाया जवाब देते हुए बोले कि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है, जिससे तालाब में साफ पानी पहुंच रहा है. निगम की लापरवाही पर पर्दा डालते हुए आयुक्त स्थानीय लोगों पर ही चढ़ बैठे. कहा स्थानीय लोग ही तालाब में कचरा फेंककर उसे गंदा कर रहे हैं. अब ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
नगर आयुक्त ने जो कुछ कहा वो इससे पहले वाले भी सभी नगर आयुक्त कह चुके हैं. इनका बयान सिर्फ आईवॉश है. हकीकत यह है कि नगर निगम पूरी तरह लापरवाह है. अगर निगम बड़ा तालाब को लेकर संजीदा होता तो उसकी आज ये स्थिति नहीं होती. तालाब की रखवाली और कचरा फेंकने वालों पर नजर रखने और कार्रवाई करने के लिए निगम वहां कर्मचारी की तैनाती करता है, लेकिन निगम तो बस शहर के पार्किंग स्पेस से किराया वसूलने में व्यस्त है. यहां भी बड़ा तालाब के किनारे बने पार्क में निगम ने गार्ड रखा है, लेकिन यह गार्ड स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और पार्क की देखभाल में लगा है. अगर तालाब का पानी निगम को कुछ राजस्व दे पाते तो शायद उसकी आज यह दुर्दशा नहीं होती.
182 साल पहले रांची के बीचोंबीच यह तालाब बना था. ब्रिटिश कर्नल ओंसली ने कैदियों से 52 एकड़ जमीन पर तालाब का निर्माण कराया था. आज से 40-50 साल पहले तक बड़ा तालाब खूबसूरत और गुलजार हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे भू-माफियाओं के कारण यह सिकुड़ता चला गया. दो दशक पहले तक यह इतनी बुरी हालत में नहीं था, लेकिन जैसे ही सरकार और नगर निगम की नजर इसपर पड़ी. तालाब को संवारने के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनने लगी. करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन इससे तालाब तो नहीं संवर पाया, हां तालाब के नाम पर पैसे की बंदरबांट कर कई ठेकेदारों-अधिकारियों के घर जरूर संवर गये. आज हालत यह है कि लोग इस तालाब को कोस रहे हैं.
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