रांची : झारखंड की राजनीति के उबड़-खाबड़ सास्तों पर झारखंड के ब्यूरोक्रेट्स टिक नहीं पाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, झारखंड के मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव और पलामू के सांसद विष्णु दयाल राम को झारखंड की राजनीति रास आयी, लेकिन लक्ष्मण प्रसाद सिंह, डीके पांडेय, राजीव कुमार, रेजी डुंगडुंग, डॉ अजय कुमार, जेबी तुबिद, अमिताभ चौधरी, विमल कीर्ति सिंह, डॉ अरूण उरांव, आरपी सिन्हा और सुचित्रा सिन्हा अबतक खुद को पार्टी और राजनीति में स्थापित नहीं कर पाये हैं। यशवंत सिन्हा को कई मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद राजनीति ने उन्हें आकर्षित किया।
आइपीएस रामेश्वर उरांव को रास आई राजनीति
1972 बैच के आईपीएस अधिकारी डॉ रामेश्वर उरांव रोहतास समेत बिहार के कई जिलों में एसपी के रूप में पोस्टेड रहे. बेहतर कार्यशैली के कारण इन्हें पुलिस सेवा सम्मान से भी सम्मानित किया गया। अयोध्या आंदोलन के दौरान रथ यात्रा निकालने पर लाल कृष्ण आडवाणी को इन्होंने 23 नवंबर 1990 को गिरफ्तार किया था। रामेश्वर उरांव ने 2004 में वीआरएस लेकर कांग्रेस ज्वाइन किया। लोहरदगा से लोकसभा का टिकट मिला। जीतने के बाद केंद्र में मंत्री बनाये गये। 2009 में चुनाव हारने के बाद भी इन्हें नेशनल एसटी-एससी आयोग का चेयरमैन बनाया गया। 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले डॉ रामेश्वर उरांव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने वापसी की और राज्य में वित्त और खाद्य आपूर्ति मंत्री का पद संभाल रहे हैं।
बीडी राम ने बीजेपी का झंडा किया बुलंद
विष्णु दयाल राम 2005 से 2011 तक झारखंड के डीजीपी रहे। इससे पहले एसपी के रूप में भी कई जिलों में सेवाएं दे चुके हैं। 1979 से 1980 के बीच जब बिहार के भागलपुर में अंखफोड़वा कांड चल रहा था, उस वक्त बीडी राम वहां एसपी के रूप में पदस्थापित थे। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वीडी राम बीजेपी में शामिल होकर सक्रिय राजनीति में आये। 2014 में पलामू लोकसभा सीट से पार्टी ने टिकट दिया और चुनाव जीत गये। 2019 में भी टिकट मिला और चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।
आइपीएस अजय कुमार अब भी तलाश रहे जमीन
1990 के दशक के तेजतर्रार आइपीएस डॉ अजय कुमार जब झारखंड की राजनीति में आये तो छा गये थे। उस वक्त बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने उन्हें जमशेदपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव में टिकट दिया। चुनाव जीतकर जमेशदपुर के सांसद बने, लेकिन दूसरी बार जनता ने नकार दिया। इसके बाद वे कांग्रेस में चले गये. फिलहाल वे झारखंड की राजनीति से दूर हैं।
काम नहीं आया वीआरएस
आइपीएस लक्ष्मण प्रसाद सिंह ने 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीआरएस लिया और बीजेपी में शामिल हो गये। लक्ष्मण धनबाद से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पीएन सिंह के दबाव के कारण उन्हें धनबाद के बजाय राजधनवार से टिकट मिला, लेकिन 2014 का चुनाव वे हार गये। चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद 2019 के चुनाव में भी पार्टी ने एक बार फिर उनपर भरोसा दिखाया और बाबूलाल मरांडी के खिलाफ उन्हें धनवार से उतारा. इस बार वे दूसरे नंबर पर रहे।
आइपीएस रेजी डुंगडुंग हो गए साइड लाइन
1987 बैच के आइपीएस अफसर रेजी डुंगडुंग को भी राजनीति के ग्लैमर ने अपनी तरफ खींचा। झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले 16 अक्टूबर 2019 को उन्होंने एडीजी की नौकरी से वीआरएस ले लिया और एनोस एक्का की झारखंड पार्टी में शामिल हुए। सिमडेगा से चुनाव भी लड़ा, लेकिन जनता ने नकार दिया।
जेबी तुबिद भी नहीं चल पाए
झारखंड के गृह सचिव, कैबिनेट सचिव, आईटी सेक्रेटरी और टीएसी के पूर्व मेंबर रह चुके जेबी तुबिद ने 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले वीआरएस ले लिया था। बीजेपी से उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। पार्टी ने चाईबासा से उन्हें टिकट भी दिया, लेकिन जनता ने नकार दिया।
शीतल और अरूण उरांव को नहीं मिल पाया टिकट
2014 के विधानसभा चुनाव से पहले आईजी मुख्यालय के पद पर पदस्थापित शीतल उरांव ने भी चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस ले लिया था। नौकरी छोड़ने के बाद बीजेपी की सदस्यता ले ली। लेकिन टिकट नहीं मिला। पंजाब कैडर के आपीएस डॉ अरुण उरांव ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वीआरएस ले लिया था। चुनाव लड़ने की उम्मीद लिये बीजेपी में शामिल हो गये, लेकिन बीजेपी ने टिकट नहीं दिया।
राजीव कुमार का टिकट भी हो गया वापस
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले झारखंड के डीजीपी रहे राजीव कुमार ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. तय हुआ कि वे पलामू संसदीय सीट से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन गठबंधन के तहत यह सीट आरजेडी के खाते में चली गयी. इसके बाद उन्हें कांके सीट से टिकट दे दिया गया, कार्यकर्ताओं ने टिकट देने का जोरदार विरोध कर दिया. विरोध के स्वर दिल्ली तक पहुंचे और आखिरकार चुनाव से पहले पार्टी ने प्रत्याशी बदल दिया और राजीव कुमार का टिकट कट गया.
विमल कीर्ति और सुचित्रा सिन्हा भी हो गईं साइडलाइन
आइएएस विमल कीर्ति सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले टिकट की आस में नौकरी छोड़ दी। वह धनबाद से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन टिकट नहीं मिला। पूर्व आईएएस सुचिता सिन्हा भी 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुई थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल सका। टिकट नहीं मिलने के बाद से वे बीजेपी में सक्रिय नहीं दिख रही हैं।