रांची: मां अपने संतान के लिए कुछ भी कर सकती है. वह हर समय संतान की उज्वल भविष्य की कामना चाहती है. हर माँ की कामना होती है कि उसका पुत्र राजा के समान हो और दीर्घायु हो इसलिए वह अपने संतान के लिए उत्तम व्रत जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत करती है जिसका नाम जितिया या जीतवाहन कहा जाता है. यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है. यह व्रत तीन दिनों का होता है. सप्तमी को शुद्ध होकर रात्रि में भोजन किया जाता है और अष्टमी के दिन उपवास कर नवमी को पारण किया जाता है. व्रत के दिन चील्हु सियार का कथा सुनने का विधान है.

जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार किस दिन किया जाय इसमें संसय है. इस संसय के निवारण के लिए देखा जाय तो जितिया व्रत प्रदोषव्यापिनी व्रत है. प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि इस बार 06 अक्टूबर शुक्रवार को प्रातः 9:25 बजे के बाद अष्टमी तिथि शुरू होगी  जो 7 अक्तूबर शनिवार को प्रातः10: 21 पर समाप्त होगी. महावीर और ऋषिकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार  जीवित पुत्रिका व्रत 6 अक्तूबर को उत्तम बताया गया है.

इसके बाद पारण किया जाय यही शास्त्रमत है. उपरोक्त प्रमाण के अनुसार  जिस दिन प्रदोष काल में अष्टमी तिथि रहे,उसी दिन जीवित्पुत्रिका का व्रत रखना है और अगले दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के बाद व्रत का पारणा करना है. यदि अष्टमी तिथि प्रदोष में दो दिन हो तो काल की प्रधानता और नवमी में पारणा है. कुछ विद्वानों का मत है कि सात को सूर्योदय में अष्टमी होने से व्रत 07 को किया जाय. जिसका पारण 08 को सूर्योदय के समय होगा.

जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा

वैसे इस व्रतराज के अनेक कथा प्रचलित है. पर जितवाहन का कथा सबसे ज्यादा प्रचलन में है. गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे. युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे. एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा. इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया. गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला. जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया.

 

प्रसिद्ध ज्योतिष

आचार्य प्रणव मिश्रा

आचार्यकुलम, अरगोड़ा, रांची

8210075897

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