Joharlive Team
रांची। कोरोना महामारी के प्रारंभिक काल में भले ही झारखंड के अधिकांश लोगों को सैनिटाइजर के प्रयोग या उसके विषय में जानकारी नहीं थी और प्रदेश इसे लेकर अन्य राज्यों पर निर्भर था, लेकिन आज यह सैनिटाइजर उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की ओर आगे बढ़ गया है। कोरोना संक्रमण की शुरुआत में सैनिटाइजर यहां खोजने पर भी नहीं मिल रहा था, लेकिन अब यहां महुआ के फलों से भी सेनिटाइजर बनाने की बात हो रही है।
कोरोना संक्रमण काल में औषधि नियंत्रण विभाग द्वारा राज्य में 17 कंपनियों को सैनिटाइजर निर्माण की अनुमति दी गई, जबकि पहले मात्र एक ही कंपनी संचालित थी। लाइसेंस मिलने के बाद सभी कंपनियों ने उत्पादन भी प्रारंभ कर दिया है।
फिलहाल राज्य में प्रतिदिन 57 हजार 100 लीटर सैनिटाइजर तैयार किया जा रहा है।
विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “औषधि नियंत्रण विभाग ने 24 मार्च से 31 मार्च के बीच ही राज्य में 14 कंपनियों को सैनिटाइजर निर्माण का लाइसेंस दिया था, जबकि सात अप्रैल से 13 अप्रैल के बीच तीन कंपनियों को निर्माण का लाइसेंस दिया गया। कोरोना का दौर प्रारंभ होने के पहले राज्य में सैनिटाइजर बनाने वाली राज्य में सिर्फ एक कंपनी थी।”
झारखंड औषधि नियंत्रण विभाग की निदेशक रितु सहाय ने बताया कि आज राज्य में सैनिटाइजर की कोई कमी नहीं है। मांग के मुताबिक सैनिटाइजर बन रहा है। उन्होंने कहा कि भविष्य में अगर सैनिटाइजर की मांग बढ़ेगी, तो इसका उत्पादन भी बढ़ाया जाएगा।
गौरतलब है कि झारखंड में महुआ के फलों से भी सैनिटाइजर बनाए जाने की योजना बनाई गई है। इसके लिए कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया है। राज्य में महुआ के वृक्षों की संख्या काफी अधिक है, जिससे महुआ का उत्पादन भी होता है।