रांची : झारखंड हाई कोर्ट जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में सोमवार को नीलम चौबे की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई हुई. मामले में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग हो रही है या यह सिर्फ कागजों पर है.

ट्रेनिंग कराए जाने का दिशा-निर्देश कोर्ट ने दिया था

झारखंड हाई कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक माह राज्य के पुलिसकर्मियों को अनुसंधान से संबंधित सटीक जांच करने, आईपीसी एवं सीआरपीसी की धाराओं की जानकारी देने आदि के बारे में ट्रेनिंग कराए जाने का दिशा-निर्देश कोर्ट द्वारा दिया गया था. रेगुलर बेसिस पर इन पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग हो रही है या नहीं, इसे शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को बताएं. मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी को होगी. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हेमंत सिकरवार ने पैरवी की.

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बोकारो से गिरफ्तार कर मध्य प्रदेश ले जाने का है मामला 

झारखंड हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा बोकारो से एक लॉ के छात्र को गिरफ्तार कर ले जाने से संबंधित मामले में पूर्व की सुनवाई में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि झारखंड पुलिस भी कानून पूरी तरह से नहीं जानती है. कानून के प्रति पुलिस वालों को ट्रेंड करना चाहिए. ऐसे में जरूरी है कि सरकार पुलिस को कैप्सूल कोर्स कराए. मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा बोकारो से एक लॉ के छात्र को गिरफ्तार कर ले जाया गया था.

ट्रांजिट परमिट के बगैर दूसरे राज्य कैसे ले जाने दी पुलिस

झारखंड हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि दूसरे राज्य की पुलिस झारखंड से व्यक्ति को पकड़ कर ले गयी, लेकिन कस्टडी में लेकर ट्रांजिट परमिट तक नहीं ली गयी. दूसरे राज्य ले जाने के संबंध में कोर्ट का ऑर्डर भी नहीं है. अगर पुलिस को सूचना थी तो जाने कैसे दिया गया. मध्यप्रदेश की पुलिस की गलती जितनी है, उतनी ही गलती मामले में झारखंड पुलिस की भी है. जानबूझ कर झारखंड पुलिस ने अभियुक्त को जाने दिया.

बोकारो से गिरफ्तार छात्र के बारे में परिजनों को नहीं दी गयी थी जानकारी

उल्लेखनीय है कि 24 नवंबर 2021 को मध्य प्रदेश पुलिस ने बोकारो से लॉ के छात्र को गिरफ्तार किया था, लेकिन परिजनों को इसकी पूरी जानकारी नहीं दी गयी. परिजनों की जगह रिश्तेदार को गिरफ्तारी की जानकारी दी गयी. दायर याचिका में कहा गया है कि छात्र की गिरफ्तारी के वक्त पुलिस के पास सिर्फ सर्च वारंट था, जबकि अरेस्ट वारंट अनिवार्य है.

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