Joharlive Team
रांची। झारखंड सरकार ने वर्ष 2007 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी राजेश सिंह को बोकारो उपायुक्त की जिम्मेदारी सौंपी है। वे राज्य में बतौर उपायुक्त जिम्मेदारी संभालने वाले पहले दृष्टिबाधित अधिकारी हैं। इससे पहले वे उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थे।
सिंह की पहचान जहां एक काबिल और तेजतर्रार आईएएस अधिकारी के रूप में होती है वहीं बहुत कम लोग जानते हैं कि सिंह अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी भी हैं। सिंह दृष्टिबाधित के लिए आयोजित विश्वकप क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
पटना के धनरूआ के गोविंदपुर के रहने वाले राजेश सिंह ने बोकारो के उपायुक्त के तौर पर पदभार संभाल लिया है। उन्होंने किसी जिले की जिम्मेदारी सौंपे जाने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने गौरान्वित किया है तथा पूरे समाज को प्रेरित करने का काम किया है।
उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करना है तथा ऐसे लोग जो ऊपर तक नहीं पहुंच पाते हैं और जो कुछ बोल नहीं पाते हैं, उनतक पहुंचने का प्रयास होगा।
पटना के रहने और उसके काम पर प्रभाव पड़ने के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “मेरी भी ग्रामीण पृष्ठभूमि रही है। मेरे जिले में जो ग्रामीण क्षेत्र है उसको इसका संपूर्ण लाभ मिलेगा। ग्रामीण समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता और अनुभव और उससे लगाव मेरे व्यक्तित्व में निपेक्षित है, जिसका निश्चित रूप से यहां के गांवों को लाभ मिलेगा।”
सिंह दृष्टिबाधित के लिए आयोजित क्रिकेट विश्वकप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 1998, 2002 तथा 2006 में उन्होंने विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। बतौर गेंदबाज उनका प्रदर्शन भी शानदार रहा था।
मॉडल स्कूल देहरादून से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर सिंह दिल्ली पहुंच गए और दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 2007 में सिविल सेवा की परीक्षा पास की।
उन्होंने आईएएनएस को बताया कि पहले वे असम, मेघालय कैडर में थे लेकिन उसके बाद 2016 में झारखंड कैडर में आ गए। यहां उनकी पहली पोस्टिंग महिला बाल विकास एवं समामिाजिक सुरक्षा विभाग के संयुक्त सचिव के पद पर हुआ।
संघर्षशील सिंह दृष्टिबाधित होने के संबंध में बताते हैं कि पटना में जब वे बचपन में क्रिकेट खेल रहे थे, तभी एक कुएं में गिर गए थे और आंख की रोशनी चली गई। हालांकि बचपन से ही आईएएस अधिकारी बनने का सपना उन्होंने नहीं छोड़ा।
सिंह को भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। उन्होंने 2007 में सिविल सेवा परीक्षा पास की, उसके बाद कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद देश के पहले 100 फीसदी दृष्टिबाधित आईएएस अधिकारी बनने का मौका मिला।
राजेश ने लगभग आठ महीने की कड़ी मेहनत से अपने संघर्ष की कहानी ‘पुटिंग आइ इन आइएएस’ नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसका विमोचन तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 2017 में किया था।
संघर्ष के बाद सफलता पाने वाले आईएएस अधिकारी कहते हैं कि आईएएस अधिकारी को दृष्टिकोण की जरूरत है। हालांकि सबसे आश्चर्यजनक बात है कि संघर्ष के जरिए सफलता की तमाम सीढ़ीयां चलने वाले पटना के धनरूआ के रहने वाले विश्वकप क्रिकेट खिलाड़ी, लेखक और आईएएस अधिकारी राजेश सिंह को अब तक बिहार सरकार ने कभी सम्मानित करने का नहीं सोचा।