Joharlive Team
रांची । झारखंड विधानसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान हो चुका है। दोनों चरणों के चुनाव में विपक्ष स्कूलों के विलय के मुद्दे को जोर शोर से उठाता रहा है। स्कूलों के मुद्दे पर सत्ता पक्ष को घेरने की रणनीति की पड़ताल जोहार लाइव टीम ने की। पड़ताल में जो बातें निकल कर सामने आई हैं, उससे साफ है की स्कूलों के जिले का मुद्दा सिर्फ राजनीतिक है। नीति आयोग की सिफारिश पर जिन स्कूलों को बंद किया गया है उसका कोई खास प्रभाव जमीनी स्तर पर नहीं पड़ा।
जानिए 5 सालों में कैसे बदली है स्कूलों की तकरीर
राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था। राज्य गठन के बाद से लेकर दिसंबर 2014 तक 3269 स्कूलों में ही बेंच डेस्क की व्यवस्था थी। लेकिन 5 सालों में बेंच- डेस्क की सुविधा 31438 स्कूलों में उपलब्ध कराई गई। जाहिर है 14 सालों में स्कूलों के लिए जो काम नहीं हुआ, उससे 10 गुना अधिक काम महज 5 सालों में हुआ। 2014 तक 4501 स्कूल तक बिजली पहुंची थी अब 27885 स्कूलों में बिजली पहुंच चुकी है।
ड्रॉप आउट हुआ जीरो
साल 2014 तक मजबूरी के कारण 5.31 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉपआउट होते थे यानि वह शिक्षा छोड़ देते थे। लेकिन 5 सालों बाद अब ड्रॉपआउट का प्रतिशत शून्य है। जाहिर है, स्कूलों के विलय का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
स्कूल ही नहीं उच्च शिक्षा के भी हालात बदले
साल 2014 के बाद राज्य में उच्च शिक्षा के भी हालात बदले हैं। 2014 के पहले राज्य में 30 पॉलिटेक्निक में 8220 सीटें थी । अब पॉलिटेक्निक कॉलेजों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है, वही सीटें बढ़कर 11575 हो गयी हैं। 2014 में राज्य में तीन विश्वविद्यालय थे , लेकिन अब 12 जिलों में महिला विश्वविद्यालय खोले गए हैं। 13 जिलों में मॉडल विश्वविद्यालय खोले गए हैं । वही कई निजी महाविद्यालय भी खुले हैं। विज्ञान और अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए वराह मिहिर तारामंडल खुला है। वहीं राज्य सरकार ने 6000 से अधिक बच्चों को 23 भ्रमण भी कराया है।