JoharLive Team
रांची । झारखंड में भाजपा का चुनावी इतिहास उतार-चढ़ाव का रहा है। राज्य गठन के बाद 2005 में हुये पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 23.57 प्रतिशत वोट और 30 सीटें मिली थी, लेकिन 2009 के विधानसभा चुनाव में उसकी सीटें घट कर 18 हो गयी। उस चुनाव में भाजपा को 20.18 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 में हुये पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 31.26 प्रतिशत वोट के साथ अब तक की सर्वाधिक 37 सीटें मिली थी।
विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा ने आजसू पार्टी के साथ गठबंधन किया था। भाजपा 72 और आजसू आठ सीटों पर लड़ी थी। भाजपा ने 37 और आजसू ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा 37 सीटें जीत कर बहुमत से पांच सीट पीछे थी। वह सहयोगी आजसू के पांच विधायकों को मिला कर बहुमत का आंकड़ा छूने में सफल रही। फिर मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी। बाद में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के टिकट पर जीते आठ विधायकों में से छह भाजपा में शामिल हो गये। इससे भाजपा विधायकों की संख्या बढ़ कर 48 हो गयी और सरकार में भी स्थिरता आ गयी। झारखंड के 19 साल के इतिहास में कुछ वषों को छोड़ कर भाजपा लगातार सत्ता में रही है, लेकिन रघुवर दास पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री हैं।
झारखंड में इस पांच साल के दौरान भाजपा की कार्य संस्कृति में काफी बदलाव आया है। 2014 के मुकाबले इस बार पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ज्यादा उत्साहित हैं। देश और प्रदेश में पांच साल शासन चलाने तथा लोकसभा चुनाव में इस बार फिर बढ़िया प्रदर्शन ने भाजपा के आत्मविश्वास को बढ़ा दिया है। सांगठनिक स्तर पर भी भाजपा काफी मजबूत हुई है और उसका वोट बैंक बढ़ा है।
भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव में 65 पार का नारा दिया है। इसके लिये पार्टी में हर स्तर पर काम किया जा रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा का फोकस इस बार एक-एक बूथ पर है। पार्टी ने इस बार 65 पार का लक्ष्य हासिल करने के लिये विपक्षी दलों के कुछ विधायकों को भी अपने पाले में कर उन्हे टिकट दिया है। लेकिन भाजपा के सामने संकट यह है कि इस बार आजसू के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति अभी तक नही बन पायी है। इससे दोनों पार्टियों के बीच दूरियां बढ़ी है। कई सीटों पर भाजपा और आजसू के उम्मीदवार आमने- सामने हैं। इसका खामियाजा दोनो को भुगतना पड़ सकता है।