धर्म/ज्योतिष

जन्माष्टमी : कृष्ण-गायों व दुर्बलों के संरक्षक

कृष्ण, सृष्टि के संरक्षक विष्णु के प्रतिबिम्ब हैं, जो धर्म की रक्षा हेतु द्वापर युग में अवतरित हुए। एक अवतार का यही उद्देश्य होता है। जब भी सृष्टि में धर्म का पतन होता है तब उसकी स्थापना एवं सृष्टि के संरक्षण के लिए योगी तथा ऋषि मुनि यज्ञ द्वारा विष्णु जी की शक्ति का आह्वान करते हैं, जिसके फलस्वरूप उस शक्ति की प्रतिक्रिया अवश्य होती है। भगवान कृष्ण ने गीता में भी कहा है-

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्” ॥४-७॥

अर्थात जब जब धर्म संकट में होता है, और अधर्म बढ़ने लगता है, तब तब मैं अवतरित होता हूँ।

यहां मैं एक बात पर ज़ोर देना चाहता हूं कि धर्म कोई मज़हब नहीं है और अंग्रेज़ी भाषा में भी इसका कोई पर्याय नहीं है। धर्म तो इस सृष्टि का आधार है, इसकी जीवन रेखा है जो इसे निरंतर चला रहा है। सूर्य का धर्म है पृथ्वी पर प्रकाश एवं गर्मी प्रदान करना, पेड़ का धर्म है पर्यावरण को शुद्ध करना तथा छाया एवं भोजन उप्लब्ध् कराना, मनुष्य का धर्म है- हर अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाना, निर्बलों की सहायता एवं रक्षा करना तथा यह सुनिश्चित करना कि आसपास कोई भी भूखा न रहे। किन्तु आज मनुष्य अपने धर्म को भूल गया है, अपराध अपनी चरम सीमा पर है, गाय, कुत्ते, बंदर आदि जानवर भूख से मर रहे हैं, योग का व्यापारीकरण हो गया है, वेदों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है तथा प्रकृति के साथ आनुवांशिक संशोधन तथा संकरण जैसी प्रक्रियाओं द्वारा छेड़छाड़ की जा रही है।

उदाहरण के तौर पर अभी हाल ही में दिल्ली के एक प्रख्यात हाट में एक गर्भवती गाय घायल पड़ी थी तथा उसके शरीर से बहुत लहू भी बह रहा था। ध्यान आश्रम के एक स्वयंसेवक ने उस गाय की मदद के लिए आस-पास के लोगों से सहायता मांगी लेकिन कोई आगे नहीं आया। फिर उसने फ़ोन करके एक वैन की व्यवस्था कर लोगों से उसे ट्रक में डालने की सहायता मांगी, लेकिन तब भी कोई आगे नहीं आया, आखिरकार उस गाय की मृत्यु ही हो गयी। अब आप उस बाज़ार में जाकर देखें तो गलियां और दुकानें त्यौहार की ख़ुशी में सुसज्जित हैं, दुकानदार बाल कृष्ण की मूर्तियां और सुनहरे मुकुट बेच रहे हैं, क्योंकि जन्माष्टमी आने वाली है।

आश्चर्यजनक बात तो यह है कि कृष्ण गायों और दुर्बलों के रक्षक थे तथा हर अधर्म के विरुद्ध थे। हमारे ग्रंथों में उन्हें गोपाल कहा गया है, किन्तु आधुनिक काल में स्वयं को कृष्ण भक्त कहने वाले लोग वीआईपी दर्शनों की व्यवस्था तथा मूर्तियों और मंदिरों को सजाने में व्यस्त हैं और गाय जो कि कृष्ण को सर्वप्रिय थी, उसे बचाने का समय किसी के पास नहीं है।

मोक्ष पाने के लिए, भक्ति सबसे आसान मार्ग भी है और सबसे कठिन भी। जब भक्ति देवत्व की ओर महसूस होती है तो उसकी अभिव्यक्ति भी तरह – तरह की होती है । प्रत्येक भाव की अभिव्यक्ति साधक और उसकी साधना के स्तर का एक स्पष्ट संकेत है। अर्जुन भी कृष्ण भक्त थे और उन्होंने गौरक्षा हेतु अपना बारह वर्ष वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञात वास दांव पर लगा दिया था। यदि आप कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने के प्रार्थी हैं तो आपको चाहिए कि कृष्ण द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलें। इससे अधिक खुशी उन्हें और कोई चीज़ नहीं दे सकती, क्योंकि विष्णु के सभी अवतार और शिव के सभी कार्यों का उद्देश्य गरीबों का उत्थान, अपने से कमज़ोर जीवों की रक्षा तथा पर्यावरण का संरक्षण रहा है।

यदि आप अपने इष्ट देव के चुने हुए कार्य नहीं कर रहे हैं तो सिर्फ धार्मिक स्थलों पर जाकर फूल चढ़ाने और गायन करने से कुछ उपलब्ध नहीं होगा। यदि आप मंदिरों को सजाने में मगन हैं, जबकि उन्हीं मंदिरों के बाहर कूड़े के ढेर लगे हों और पशु-पक्षी व जन -साधारण पीड़ा व अत्याचार ग्रस्त हों तो मैं आश्वासन देता हूं कि आप अपने इष्ट देव के आसपास भी नहीं हैं। फिर चाहे आपको अद्भुत वीआईपी दर्शन हो जाएं या आपको अपने पसंदीदा मंदिर को फूलों और सुनहरे मुकुट से सजाने का मौका मिल जाए, सब निरर्थक है।

जन्माष्टमी भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष के आठवें दिन पर पड़ती है। यह दिन आध्यात्मिक क्रियाओं के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन कृष्ण की शक्ति उस साधक के लिए आसानी से उपलब्ध होती है जो गुरु के सानिध्य में यज्ञ के माध्यम से उनके द्वारा दिखाए मार्ग का अनुसरण करता है। यह एक बहुत शक्तिशाली दिन है जब सनातन क्रिया और अष्टाँग योग की क्रियायों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है तथा साधकों के विचार भी शीघ्र फलित हो जाते हैं। यदि आप यज्ञ की शक्ति और विचारों को शीघ्र फलित करने की उसकी क्षमता तथा सूक्ष्म शक्तियों का अनुभव करना चाहते हैं तो आप ध्यान फाउंडेशन से संपर्क कर सकते हैं।

अश्विनी गुरुजी
ध्यान आश्रम के मार्गदर्शक हैं, www.dhyanfoundation.com पर उनसे सम्पर्क किया जा सकता है

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