दशहरे के दिन नीलकंठ को देखना काफी शुभ माना जाता है।
दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन का “ दर्शन ”
कुछ इस प्रकार से पुरातन से चला आ रहा है :—-
“नीलकंठ तुम नीले रहियो,
दूध-भात का भोजन करियो,
हमरी बात राम से कहियो”
इस लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है।
दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएँ। ताकि साल भर उनके यहाँ शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे।
आचार्य प्रणव मिश्रा के अनुसार इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं।
सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है।
जीत तो जीत है। इसका जश्न मनाना स्वाभाविक है। फिर चाहे बुराइयों पर अच्छाई की जीत हो या फिर असत्य पर सत्य की ।
विजय दशमी का पर्व भी जीत का पर्व है।
अहंकार रूपी रावण पर मर्यादापुरुषोत्तम राम की विजय से जुड़े पर्व का जश्न पान खाने खिलाने और नीलकण्ठ के दर्शन से जुड़ा है ।
विजय का सूचक पान :-
बीड़ा (पान) का एक महत्व यह भी है इस दिन हम सन्मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं।
वहीं नीलकण्ठ अर्थात् जिसका गला नीला हो ।
यह जनश्रुति भी इसी रूप में जुड़ी है।
धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर को नीलकण्ठ माना गया है इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है।
जनश्रुति तो और भी हैं लेकिन कई स्थानों पर दोनों बातों का विशेष महत्व है।
दरअसल प्रेम का पर्याय है पान।
दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है।
ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं, और यह बीड़ा उठाते हैं कि वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे।
पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है।
इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
दशहरे के दिन पान खाने की परम्परा पर वैज्ञानिकों का मानना है कि…..
चैत्र एवं शारदीय नवरात्र में पूरे नौ दिन तक मिश्री, नीम की पत्ती और काली मिर्च खाने की परम्परा है।
क्योंकि इनके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है। इस समय संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
ऐसे में यह परम्परा लोगों की बीमारियों से रक्षा करती है। ठीक उसी प्रकार नौ दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की प्रकिया प्रभावित होती है।
पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है।
इसलिए दशहरे के दिन शारीरिक प्रक्रियाओं को सामान्य बनाए रखने के लिए पान खाने की परम्परा है।
किसानों का मित्र :- वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाग्य विधाता होने के साथ-साथ किसानों का मित्र भी है, क्योंकि सही मायने में नीलकंठ किसानों के भाग्य का रखवारा भी होता है, जो खेतों में कीड़ों को खाकर किसानों की फसलों की रखवारी करता है।
आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा, राँची
9031249105
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