Nitish Kumar: बिहार के सीएम नीतीश कुमार कब नाराज हो जाएं, कोई नहीं जानता. अलबत्ता वे अपनी नाराजगी का संकेत जरूर दे देते हैं. वे जब चुप्पी साध लें तो लोग मान लेते हैं कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है. उनकी नाराजगी भी किसी एक मुद्दे पर भले जाहिर होती है, लेकिन इसके लिए वे शिकायतों का पुलिंदा तैयार करते रहते हैं. उनका गुस्सा तब फूटता है, जब उनके मन का न हो या उनकी मर्जी के खिलाफ हो. नीतीश कुमार पिछले पखवाड़े भर से एक-दो मौकों को छोड़कर सक्रिय भी नजर नहीं आ रहे. सार्वजनिक होते भी हैं तो मीडिया से दूर ही रहते हैं. उनके साथ साये की तरह हरदम मंडराते रहने वाले मंत्री विजय चौधरी और अशोक चौधरी भी साथ नहीं दिख रहे. दोनों डेप्युटी सीएम विजय कुमार सिन्हा और सम्राट चौधरी भी किनारे-किनारे ही रह रहे हैं. नीतीश का यह रूप तब-तब सामने आता है, जब वे कुछ चौंकाने वाला कदम उठाने वाले होते हैं. राजनीतिक विश्लेषक नीतीश के इस रूप का अलग-अलग अंदाज में आकलन कर रहे हैं.
नीतीश की नाराजगी के कई कारण हो सकते हैं
विश्लेषकों का एक तबका इसे भाजपा से नीतीश की नाराजगी के रूप में देख रहा है. नाराजगी के कारण भी गिना-बता रहा है. ऐसे लोग मानते हैं कि नीतीश इस बार भाजपा के साथ खुले मन से गए तो हैं, लेकिन भाजपा उनकी भावनाओं को समझ नहीं पा रही है. बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की उनकी मांग केंद्र सरकार ने सिरे से खारिज कर दी. इसकी भरपाई विशेष पैकेज से तो की, लेकिन विपक्ष ने जिस तरह विशेष राज्य को मुद्दा बना लिया है, उससे नीतीश आहत हैं. नीतीश की नाखुशी का दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि बड़ी मुश्किल से उन्होंने जाति जनगणना का मुद्दा आरजेडी के हाथ से झटका था. केंद्र के इनकार के बाद राज्य सरकार ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए 500 करोड़ के खर्च से जाति सर्वेक्षण कराया. जाति सर्वेक्षण को जरूरी और जायज ठहराने के लिए उन्होंने तदनुरूप आरक्षण की सीमा बढ़ा कर 65 प्रतिशत की. मामला कोर्ट में अंटक गया है.