नई दिल्ली: यूक्रेन युद्ध और लाल सागर संकट के कारण आपूर्ति प्रभावित होने और वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी के बाद भारत एक प्रमुख उर्वरक घटक रॉक फॉस्फेट के आयात के लिए मॉरिटानिया के साथ एक दीर्घकालिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की योजना बना रहा है. भारत इस महीने की शुरुआत में पेश किए गए केंद्रीय बजट पर नजर रखते हुए उर्वरक के स्थिर आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रहा है, जिसमें उर्वरक सब्सिडी के लिए 1.64 ट्रिलियन रुपये का भारी आवंटन किया गया है. भारत इस प्लेबुक के हिस्से के रूप में पिछले दो वर्षों में मोरक्को, सेनेगल, इज़राइल, ओमान, कनाडा, सऊदी अरब और जॉर्डन के साथ दीर्घकालिक समझौते कर चुका है.
केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि भारत यूरिया में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन यह अभी भी अपनी रॉक फॉस्फेट की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि अपनी रॉक फॉस्फेट की मांग को पूरा करने के लिए पिछले दो वर्षों में हमने मोरक्को, जॉर्डन, ओमान, रूस और सऊदी अरब सहित कई देशों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध में प्रवेश किया है. हम नए देशों की खोज करते रहते हैं ताकि किसी एक या निश्चित देश पर निर्भरता न रहे. अब हम डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम) जैसे फॉस्फेटिक उर्वरकों की उपलब्धता में सुधार के लिए तीन साल के लिए दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मिस्र और मॉरिटानिया पर विचार कर रहे हैं, क्योंकि इन देशों में रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड है.
बता डेन कि भारत म्यूरेट ऑफ पोटाश के लिए आयात पर निर्भर है और सालाना लगभग 5 मिलियन टन फॉस्फेट रॉक, 2.5 मिलियन टन फॉस्फोरिक एसिड और 3 मिलियन टन डीएपी का आयात करता है. डायमोनियम फॉस्फेट के मामले में लगभग 60% आपूर्ति आयात की जाती है. इसके अलावा 25% यूरिया और 15% एनपीके उर्वरक आवश्यकताओं को आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है. विश्व के डीएपी उत्पादन में देश का योगदान लगभग 18% है. वहीं विश्व स्तर पर होने वाले व्यापार का लगभग 23.6% डीएपी आयात करता है, और दुनिया भर में लगभग 30% डीएपी की खपत करता है.
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