JoharLive Desk
नई दिल्ली : भारतीय अर्थव्यवस्था में लंबे समय से सुस्ती बरकरार है। भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में नॉन परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) यानी बैड लोन एक बड़ी समस्या है। बैंकों का करोड़ों रुपये बैड लोन में फंसा पड़ा है। बैंकिंग सेक्टर पर इसका प्रभाव पड़ रहा है और बैंकों के समक्ष आर्थिक संकट पैदा हो रहा है। एनपीए में बढ़ोतरी की वजह से बैंक लोन देने में और भी सावधानी बरत रहे हैं।
बता दें कि बैड लोन के मामले में विश्व की 10 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत शीर्ष पर है। दूसरे स्थान पर इटली है। दिसंबर 2018 तक इटली का बैड लोन अनुपात 8.5 फीसदी था। मार्च 2019 तक 3.1 फीसदी के अनुपात के साथ ब्राजील बैड लोन की सूची में तीसरे स्थान पर था।
आंकड़ों के अनुसार, चीन में मार्च 2019 तक बैड लोन अनुपात 1.8 फीसदी था, जबकि भारत में यह अनुपात 9.3 फीसदी रहा है। भारत का करीब 11.46 लाख करोड़ रुपये बैड लोन में फंसा हुआ है। लेकिन चीन का इससे तीन गुना कम यानी करीब 3.79 लाख करोड़ रुपया ही बैड लोन में फंसा हुआ है। इसलिए पड़ोसी देश चीन से भारत बैड लोन अनुपात के मुकाबले में कहीं ज्यादा पिछड़ा हुआ है।
बता दें कि दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में बैड लोन के मामले में कनाडा को सबसे साफ सुथरा देश माना जाता है। कनाडा में बैड लोन का अनुपात माहज 0.4 फीसदी है।
हाल ही में बैंकों के एनपीए को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी आगाह किया था। आरबीआई ने कहा कि सितंबर 2020 तक बैंकों का सकल एनपीए अनुपाद बढ़कर 9.9 फीसदी हो सकता है, जो सितंबर 2019 में 9.3 फीसदी के स्तर पर था। आरबीआई ने अपनी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) में यह बात कही।
आरबीआई ने कहा, ह्यव्यापक आर्थिक परिदृश्य में मौजूद चुनौतियों, फंसे कर्जों में बढ़ोतरी और कर्ज बढ़ोतरी में सुस्ती के मद्देनजर बैंकों का सकल एनपीए अनुपात बढ़कर 9.9 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2020 तक सरकारी बैंकों का सकल एनपीए बढ़कर 13.2 फीसदी हो सकता है, जो सितंबर 2019 में 12.7 फीसदी था। वहीं इसी अवधि के दौरान निजी बैंकों का सकल एनपीए 3.9 फीसदी से बढ़कर 4.2 फीसदी तक पहुंच सकता है। विदेशी बैंकों का सकल एनपीए 2.9 फीसदी से बढ़कर 3.1 फीसदी हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि बैंकों का कुल (नेट) एनपीए अनुपात सितंबर 2019 में घटकर 3.7 फीसदी रह गया, जिससे प्रोविजनिंग में बढ़ोतरी का पता चलता है।
वहीं चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की मुश्किलें बढ़ी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 में एनबीएफसी का सकल एनपीए बढ़कर 6.3 फीसदी हो गया, जो मार्च में 6.1 फीसदी के स्तर पर था।
बैंकवार संपत्ति गुणवत्ता के वितरण पर गौर करें तो सितंबर 2019 में 24 बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 5 फीसदी से कम था, जबकि चार बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 20 फीसदी से ज्यादा था। कृषि और सेवा क्षेत्रों की संपत्ति गुणवत्ता को सकल एनपीए से मापा जाता है। सितंबर, 2019 में यह बढ़कर 10.1 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया, जो मार्च, 2019 में लगभग आठ फीसदी था। इस अवधि के दौरान उद्योगों के लिए फंसे कर्ज पांच फीसदी से घटकर 3.79 फीसदी रह गए।
रिपार्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 में बैंकों के कुल कर्ज पोर्टफोलियो में बड़े कर्जदारों और उनके सकल एनपीए की हिस्सेदारी घटकर क्रमश: 51.8 फीसदी और 79.3 फीसदी थी, जबकि मार्च 2019 में यह क्रमश: 53 फीसदी और 82.2 फीसदी के स्तर पर था। बैंकों के कुल कर्ज और सकल एनपीए में देश के 100 बड़े कर्जदारों की हिस्सेदारी क्रमश: 16.4 फीसदी और 16.3 फीसदी है।