रांचीः नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च लॉ (एनयूएसआरएल), रांची के सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सबाल्टर्न स्टडीज, झालसा, महिला अध्यन केंद्र, पटना विश्वविद्यालय की ओर से शुक्रवार को मानवाधिकार दिवस पर 21वीं सदी में महिलाओं के धार्मिक अधिकार व मानव अधिकार, विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

इस तीन दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह, जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद, मौजूद रहे. साथ ही झारखंड हाईकोर्ट के महाधिवक्ता राजीव रंजन, डॉ सुनीता राय, डॉ अलका चावला, डॉ केसवा, डॉ सुबीर कुमार ने हिस्सा लिया. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ रवि रंजन ने इस बात पर जोर दिया कि महिला और पुरूष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और समाज में किसी एक का महत्व दूसरे से ज्यादा नहीं है. इसीलिए यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि महिलाओं के संदर्भ में होनेवाले मानवाधिकार हनन का गंभीर रूप से जल्द से जल्द निष्पादन आवश्यक है. उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कई महत्वपूर्ण निर्णयों के बारे में प्रतिभागियों को अवगत कराया.

जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने मानवाधिकारों के सार्वजनिक घोषणापत्र का वर्णन करते हुए यह कहा कि किसी भी समाज के प्रगति तब तक संभव नहीं है, जब तक वहां की महिलाओं का विकास नहीं हो. सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संवैधानिक मूल्य तब तक कोरे हैं, जब तक कि उन्हें समाज जिम्मेदारी के साथ नहीं अपनाता है. इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश ने महिलाओं के धार्मिक अधिकार पर विश्वविद्यालय की ओर से लिखी गई पुस्तक का विमोचन भी किया.

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