रांची : आईएमए और झासा की राज्य इकाई की महत्वपूर्ण बैठक हुई. जिसमें चिकित्सकों ने संबंधित समस्याओं एवं लंबित मांगों पर चर्चा की. साथ ही सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि मॉडर्न मेडिसिन, होम्योपैथी, आयुर्वेद सभी की अपनी पहचान है और अपना इतिहास है. मरीज की देखभाल एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से मेडिसिन के सभी पद्धति को मिक्स कर देना भयावह होगा. इसीलिए मिक्सोपैथी के प्रयास को तत्काल प्रभाव से रोका जाए. सर्वसम्मिति से यह निर्णय लिया कि विभाग और सरकार के द्वारा हमारी मांगें नहीं मानी गई ,तो आचार संहिता की अवधि के बाद संगठन ठोस निर्णय लेने के लिए मजबूर होगा. जिसकी सारी जिम्मेवारी विभाग और सरकार की होगी.
23 राज्य में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू
वहीं देश के 23 राज्यो में चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल स्टाफ के साथ हिंसा, अस्पताल में तोड़फोड़ को रोकने के उद्देश्य से मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू है. झारखंड राज्य में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट 23 मार्च 2023 को ही कैबिनेट से पारित हुआ और विधानसभा के पटल पर रखा गया. विधानसभा में बहस के बाद इसे प्रबर समिति को सौंप दिया गया. इस आशय के साथ की एक महीने के अंदर प्रबर समिति की रिपोर्ट सौंप दी जाए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस पर अभी तक कुछ भी नहीं किया गया. एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 के प्रावधानों के अनुसार मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को यथाशीघ्र लागू किया जाए.
ये भी रखी मांग
50 बेड तक के छोटे एवं मध्यम स्तर के अस्पताल एवं क्लीनिक को क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एवं रेगुलेशन )एक्ट 2010 से मुक्त किया जाए.निदेशक प्रमुख, स्वास्थ्य सेवाएं की अध्यक्षता एवम आईएमए की सहभागिता में एक टीम बनाई गई थी, जिसने क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का फाइनल प्रारूप तैयार किया और विभाग को सौंपा. फाइल विगत 01 वर्ष से विभाग में यथावत पड़ी हुई है.
स्वास्थ्य पर जीएसटी ,बीमारी पर टैक्स जैसा है. मरीज के बीमारी पर टैक्स अनुचित है, इसे जीएसटी से मुक्त किया जाए. संगठन के मेंबरशिप पर, सेवाओं पर, आधुनिक तकनीक से रूबरू होने के उद्देश्य से आयोजित साइंटिफिक सेशन को जीएसटी से मुक्त किया जाए. जीवन रक्षक एवं आवश्यक उपकरण, ऑक्सीजन ,दवाओं, लेबोरेटरी जांच, स्वास्थ्य बीमा जिसके जीएसटी रेट वर्तमान में 12% से 28% तक है उसे घटाया जाए.
मरीज के ईलाज में किसी चिकित्सक का कोई अपराधिक इरादा नहीं होता. चिकित्सक अपने ज्ञान एवं अनुभव से अपना सर्वोत्तम प्रयास करता है. किसी भी अप्रिय घटना के उपरांत डॉक्टरों पर आपराधिक मुकदमा चलना अप्रासंगिक है. इसलिए मेडिकल प्रोफेशन को क्रिमिनल प्रोजैक्यूशन से मुक्त किया जाए.
चिकित्सा पेशा को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट से मुक्त किया जाए. वर्तमान कानून में कंपनसेशन के कैंपिंग के लिए आवश्यक सुधार की जाए
पीसीपीएनडीटी एक्ट में सुधार की जरूरत है. इसका नियंत्री अधिकारी पूर्व की तरह जिले के सिविल सर्जन को बनाया जाए, ताकि अल्ट्रासाउंड की खरीद- बिक्री, उसका निबंधन, निरीक्षण सही समय पर किया जा सके. वर्तमान प्रावधानों के अनुसार झारखंड राज्य में कोई भी रेडियोलॉजिस्ट सिर्फ दो केंद्रो में अल्ट्रासाउंड कर सकता है. इसलिए राज्य के अधिकांश अल्ट्रासाउंड रेडियोलॉजिस्ट के अभाव में टेक्नीशियन द्वारा संचालित हो रहे हैं. पीसीपीएनडीटी एक्ट( लिंग परीक्षण रोकना )के उद्देश्य से यह गलत प्रतीत होता है. ऐसे में रेडियोलॉजिस्ट का दो केंद्र में ही कार्य करने का प्रतिबंध हटाया जाए.
आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत इलाज के दर असंतुलित है. अन्य राज्यों की तरह इसे रिवाइज किए जाने की जरूरत है.
इंडियन मेडिकल कॉलेज से पास आउट इंडियन मेडिकल स्टूडेंट्स का प्रेक्टिस करने या पीजी एग्जाम देने के लिए लाइसेंसिंग परीक्षा(NEXT) अन्याय है. इसे तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए.
राज्य में जनसंख्या के अनुरूप चिकित्सा पदाधिकारी के पद की संख्या बढ़ाई जाए और इसके लिए:-
- a) स्वास्थ्य उप केंद्र में एवं वैलनेस केंद्र में एमबीबीएस ग्रेजुएट का पद सृजित हो और उसके विरुद्ध बहाली हो.
- b) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा एड हॉक एवं कॉन्ट्रैक्ट पर डॉक्टरों की बहाली बंद हो.
विभाग द्वारा किसी चिकित्सक पर लगाए गए आरोप जांच या न्यायालय में अगर गलत सिद्ध होते हैं, वैसे स्थिति में आईपीसी 211 के तहत आरोप लगाने वाले पदाधिकारी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान तय हो.
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र मे पदस्थापित/ प्रति नियुक्त चिकित्सा पदाधिकारी को विशेष सुविधा दिए जाने का प्रावधान है:-
सुरक्षा की दृष्टिकोण से अंचल अधिकारी के समक्ष शक्ति प्रदत्त हो.
स्थाई विकलांगता/ मृत्यु की स्थिति में न्यूनतम 5 करोड़ का स्वास्थ्य बीमा हो.
रुरल अलाउंस दिए जाएं.
मेडिकल कॉलेज में चिकित्सक ही शिक्षक होंगे ,यह तय करना होगा. शिक्षक की न्यूनतम योग्यता एमबीबीएस होगी. नॉन एमबीबीएस शिक्षकों की पहचान कर उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाया जाए और रिक्त पदों पर योग्य डॉक्टर की शिक्षक के रूप में बहाली की जाये.
केंद्र सरकार ने सरकारी चिकित्सकों(एम बी बी एस, दंत संवर्ग एवं दोनों ही पद्धति के विशेषज्ञ चिकित्सकों )के लिए डायनेमिक ए सी पी दिए जाने का प्रावधान कर रखा है. बिहार सरकार ने इसे अपनाया. झारखंड सरकार ने इसमें बदलाव कर डालें. हमारी मांग है कि केंद्र सरकार के तर्ज पर हमें डायनेमिक एसीपी दिया जाए.
1988 बैच के चिकित्सक अभी तक मेडिकल ऑफिसर ही है. 36 साल बीत गए ,लेकिन इनकी प्रोन्नति नहीं हुई. झारखंड के डायरेक्टरेट में पदस्थापित सभी चिकित्सक एवं समस्त जिले के सिविल सर्जन अभी तक मेडिकल ऑफिसर ही है और प्रोन्नति की उम्मीद लगाए बैठे हैं.