रांची : झारखंड हाईकोर्ट ने 512 आदिवासी युवाओं को नक्सली बताकर फर्जी तौर पर उनका सरेंडर कराने के मामले की जांच से जुड़ी जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की। चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया, जिस पर दोनों सरकारों की ओर से समय की मांग की गई। कोर्ट ने इसे स्वीकार लिया। शुक्रवार को इस मामले में हुई सुनवाई में प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने मामले की पैरवी की।
यह जनहित याचिका झारखंड काउंसिल फॉर डेमोक्रेट राइट की ओर से दाखिल की गयी है। इसमें कहा गया है कि झारखंड के 512 युवाओं को फर्जी तौर पर नक्सली घोषित कर उनका सरेंडर कराया गया।
इसके लिए उन्हें सीआरपीएफ में नौकरी दिलाने का लालच दिया गया था। इसके लिए वरीय पुलिस अधिकारियों ने राज्य सरकार के खजाने से करोड़ों रुपये खर्च करवाए। इसके पीछे उनका मकसद यह था कि उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री के सामने अवार्ड मिल सके।
पूर्व में इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और झारखंड सरकार के गृह सचिव को 512 युवाओं के सरेंडर के मामले में सीलबंद रिपोर्ट पेश करने को कहा था।
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा था कि क्या यह सही है कि जिन युवाओं को नक्सली बताकर सरेंडर कराया गया, क्या उन्हें सीआरपीएफ में नौकरी दिलाने के नाम पर रांची के पुराने जेल कंपाउंड में रखकर प्रशिक्षण दिलाया गया था? क्या उन्हें प्रशिक्षण दिलाना कानूनी तौर पर वैध था?