धनबाद : आईआईटी-आईएसएम धनबाद के इंजीनियरों ने एग्रीकल्चर के वेस्ट मैटेरियल से बायोकोल तैयार करने की तकनीक इजाद किया है. बायोकोल का उपयोग करके स्टील प्लांट, थर्मल प्लांट में बड़े पैमाने पर कोल के जलने से उत्पन्न हो रहे कार्बन-डाई-ऑक्साइड को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकेगा. संस्थान के केमिकल एंड इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत असिस्टेंट प्रो. इजाज अहमद ने बताया कि बायोकोल तैयार करने की इस मशीन की डिजायनिंग संस्थान में तैयार किया गया और फिर फेबीरकेटर के द्वारा मशीन बनाया गया. इसके लिए बकायदा टेंडर निकाला गया था. इस मशीन की कुल लागत 22 लाख रुपये आयी है. उन्होंने बताया भारत एक कृषि प्रधान देश है. देश में 70 प्रतिशत लोग कृषि पर ही निर्भर हैं. ऐसे में इस मशीन को जगह-जगह स्थापित करके बायोकोल तैयार किया जा सकता है. आज देश के सामने विकट स्थिति है कि पर्यावरण में तेजी से कार्बन डाई ऑकसाइड फैल रहा है जिसके परिणाम स्वरूप ग्लेसियर पिघल रहे हैं, जो कि मानव जीवन के लिए खतरे की घंटी है. चूकी बड़े पैमाने पर जब गलेसियर पिघलने लगेंगे तो इस पृथ्वी पर केवल पानी ही पानी होगा और मानव जीवन का अंत निश्चित है. ऐसे में कार्बन डाई ऑकसाइड के कम से कम उत्सर्जन पर ध्यान देना आवश्यक है.
उन्होंने बताया बायोकोल बनाने के लिए एग्रीकल्चर से मिलनेवाला जो वेस्ट मैटेरियल जैसे घास फुस, गन्ने का रस निकलने के बाद का जो वेस्ट है उससे तैयार किया जाता है. बायोकोल तैयार करने के लिए पहले वेस्ट मैटेरियल को मशीन के एक भाग में डाला जाता है. जहां के बाद मैटेरियल एक भाग से होकर फर्नीश तक पहुँचता है और फिर छह सौ डिग्री के तापमान में उसे जलाया जाता है और फिर उससे जो एश तैयार होता है वह बायोकोल के रूप में प्राप्त होता है. इसे ही प्लांटो में कोल के साथ मिलाकर काम में लाने से कार्बन डाई ऑकसाइड की अधिकता को कम किया जा सकता है.
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