रांची: पूर्व मंत्री सह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने पीएम नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि झारखण्ड में चुनावी सभाओं में पीएम केवल भ्रष्टाचार का नाम लेकर झारखण्ड के लोगों को डराने, भड़काने और भटका रहे हैं. इससे भाजपा को कोई चुनावी लाभ नहीं मिलने वाला. इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी ऐसी कोशिशों को बंद कर देनी चाहिये. उन्होंने कहा कि झारखण्ड के साथ देश की जनता भी उन्हें और भाजपा को सत्ता से हटाने का मन बना चुकी है. पीएम को झारखण्ड के लोगों की यदि इतनी ही चिन्ता है और वे झारखण्ड के लोगों का हित चाहते हैं तो उन्हें झारखण्ड का केन्द्र सरकार के पास बकाया 1 लाख 36 हज़ार करोड़ का भुगतान अविलंब कर देना चाहिये.
भ्रष्टाचार को दे रही प्रोत्साहन
झारखण्ड के लोग एक बात को बहुत अच्छे से जान चुकी है कि केन्द्र सरकार एक वैसे भ्रष्टाचार से भरे वातावरण को प्रोत्साहन दे रही है, जहां भले ही ऊपरी तौर पर पकड़ में ना आये. लेकिन सभी लोग इस बात को जानते हैं कि मोदी सरकार की कार्यप्रणाली में केवल और केवल कुछ लोगों को ही फायदा पहुंचाने की बात होती है. आम लोगों को महंगाई, बेरोजगारी और अन्य जटिल समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. जिसपर ना तो प्रधानमंत्री मोदी का, न ही केन्द्र सरकार और ना ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का ध्यान है. चुनावी सभाओं में जोहार और जय श्री राम करने के साथ ही प्रधानमंत्री महोदय को जय सरना कहकर भी अभिवादन करना चाहिये. उन्हें यह बताना चाहिये कि आखिर सरना धर्म कोड को सरकार क्यों नहीं लागू करना चाहती है? इसके पीछे भाजपा का कौन-सा डर है? उन्होंने कहा कि आदिवासियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिखाया जा रहा प्रेम और मीठी-मीठी बातें केवल दिखावा, छलावा और सीधे-साधे आदिवासियों-मूलवासियों को भटकाने की चाल है.
राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार
बंधु तिर्की ने कहा कि डीएमएफटी फंड मामले में भी केन्द्र सरकार निष्पक्ष नहीं है और सही बात यह है कि उन सभी राज्यों के साथ केंद्र सरकार का सौतेला व्यवहार जगज़ाहिर है, जहां विपक्ष के किसी दल, विपक्षी गठबंधन या इंडिया गठबंधन की सरकार है. साथ ही कहा कि सौ बात की एक बात यही है कि कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के हित में कई कानून बनाये जिसमें आदिवासियों का हित सुरक्षित और संरक्षित था. साथ ही उन कानूनों के निर्माण में आदिवासियों एवं मूलवासियों की जीवन पद्धति, जल, जंगल और जमीन को पूरा-पूरा महत्व देने के साथ ही प्रकृति के साथ सामंजस्य की भावना को समझा गया. लेकिन जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है तभी से एक ओर वन संरक्षण कानून को कमजोर किया गया. वहीं दूसरी ओर वनाधिकार कानून के मामले में भी उनका रवैया ढीला-ढाला है और केन्द्र सरकार के पास 20 लाख से ज्यादा आवेदन लंबित पड़े हैं. प्रधानमंत्री से अपनी संवैधानिक मर्यादा का ध्यान रखने की अपील करते हुए कहा कि चुनाव आते-जाते रहते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री के द्वारा किये जा रहे व्यवहार और उनकी भाषा के कारण संवैधानिक मर्यादा तार-तार हो रही है.