रिपोर्ट : मनोज शर्मा
बोकारो : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ऐलान कर दिया है कि बोकारो के गोमिया में डीवीसी के प्रस्तावित पंप स्टोरेज हाइडल पावर प्लांट को लगने नहीं दिया जाएगा. मुख्यमंत्री के इस ऐलान से दामोदर घाटी निगम को जबरदस्त झटका लगा है. दामोदर घाटी निगम 2030 में देश की ऊर्जा जरूरतो को देखते हुए अपनी बिजली उत्पादन क्षमता के विस्तार में लगा हुआ है. लगभग 60 हजार करोड़ की लागत से दामोदर घाटी निगम ने आठ हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता जोड़ कर अपनी क्षमता को 15000 मेगावाट तक करने में लगा हुआ है. डीवीसी ने 2030 की जरूरत को देखते हुए 8000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता थर्मल पावर, हाइडल पावर और सोलर पावर से जोड़ने की तैयारी में है. इसी में 1500 मेगावाट का पंप स्टोरेज हाइडल प्रोजेक्ट का गोमिया के लुगुबुरु में लगाने का प्रस्ताव किया है, जिसका विरोध हो रहा है. अब झारखंड के मुख्यमंत्री का पावर प्लांट नहीं लगने देने के ऐलान से दामोदर घाटी निगम के इस पावर प्रोजेक्ट पर संकट गहरा दिया है.
सोलर और हाइडल प्रोजेक्ट बनाने का हुआ था प्रस्ताव
बोकारो के गोमिया प्रखंड के ललपनिया के निकट लुगुबुरु घंटा बाड़ी के पास डीवीसी द्वारा प्रस्तावित डेढ़ हजार मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता के नये हाइडल पावर प्रोजेक्ट पर पर डीवीसी ने काम आगे बढ़ाया तो प्रथमे ग्रासे मच्छीका पाते की स्थिति बन गई. डीवीसी 2030 में देश की बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए अपनी क्षमता का विस्तार कर 15000 मेगावाट करने की तैयारी में लगी है. मौजूदा समय में डीवीसी की बिजली उत्पादन क्षमता 7000 मेगावाट की है, जिसे बढ़ाकर 2030 तक डीवीसी ने 15000 मेगावाट करने का ब्लूप्रिंट तैयार किया है और उसे सरकार की स्वीकृति भी मिल गई है. 2030 तक डीवीसी 8000 मेगावाट की अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए 60 हजार करोड़ खर्च कर रही है और इस राशि से उसने थर्मल, सोलर और हाइडल प्रोजेक्ट बनाने का प्रस्ताव तय किया है. डीवीसी के अधिकारी काफी उत्साह से अपने भावी परियोजना के बारे में बताते हैं.
आदिवासियों ने महाजुटान कर किया विरोध
डीवीसी ने अपने प्लान को अमलीजामा पहनाने के लिए जब सर्वे का काम शुरू किया तो आदिवासी भावना बीच में खड़ी हो गई और धार्मिक आधार पर इस प्लांट का विरोध शुरू कर दिया गया. प्लांट जहां लगना है उसी के समीप संथाल आदिवासियों का अंतरराष्ट्रीय तीर्थ स्थल लुगुबुरू घंटाबारी है. आदिवासी समाज को आशंका है कि इस प्लांट के लगने से उनके धार्मिक तीर्थ स्थल की पवित्रता खत्म होगी और उनके धार्मिक स्थल का अतिक्रमण भी होगा. इसी आधार पर आदिवासियों ने महाजुटान कर इसका विरोध किया और अपनी भावना मुख्यमंत्री तक पहुंचाई. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्थिति के नजाकत को देखते हुए इस बार के वार्षिक सम्मेलन में लुगुबुरु घंटा बारी में आकर यह साफ कर दिया कि जब तक वह मुख्यमंत्री रहेंगे, डीवीसी का यह प्लांट नहीं लगेगा. मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद अब आदिवासी विरोध को सरकार की मुहर लग गई है. इसी के साथ डीवीसी के डेढ़ हजार मेगावाट क्षमता वाले प्रस्तावित हाइडल प्रोजेक्ट पर ग्रहण भी लग गया है.
झारखंड में विकास के लिए उद्योगों का जाल बिछाना बहुत जरूरी है ताकि यहां के उद्योग से क्षेत्र का विकास हो सके, लोगों को रोजगार नसीब हो सके और विकास की किरणें आसपास के इलाकों में पहुंच सके. पर जिस तरीके से पूर्व की औद्योगिक प्रगति ने यहां के लोगों को दर्द दिया है उस कटु अनुभव ने प्लांट लगने के पहले विरोध का स्वर तेज करने पर लोगों को विवश किया है. भारत सरकार की संस्थान दामोदर घाटी निगम का यह प्रोजेक्ट झारखंड की तकदीर और तस्वीर को बदलने मे अपनी भूमिका निभा सकता है, पर केवल लोगों के कटु अनुभव ने इस प्रोजेक्ट का विरोध शुरू करवा दिया है. सरकार को चाहिए था कि वह लोगों को उनके विकास के लिए, उनकी भावना की सुरक्षा के लिए और उनके धर्मस्थल की रक्षा के लिए आश्वस्त करें और इस प्रोजेक्ट को लगाने में मदद. मगर जब विरोध हो और उसका राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना हो तो फिर विरोध को सरकार की हरी झंडी मिलते भी देर नहीं लगती. शायद डीवीसी के इस प्रोजेक्ट के विरोध के पीछे भी यही वजह हो.
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