होलिका दहन, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के पूर्व संध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन की पूजा करने से होलिका की अग्नि में सभी दुख जलकर खत्म हो जाते हैं और ग्रहदोष भी दूर होते हैं। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। होलिका दहन के आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है।
होलिका दहन की पूजा :
होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है। सबसे पहले होलिका पर रोली, हल्दी और गुलाल से टीका लगाया जाता है। इसके बाद जल, रोली, कच्चा सूत, बताशे, चावल, फूल, नारियल आदि को चढ़ाया जाता है। यह सब चढ़ाने के बाद होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा की जाती है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त :
फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है।
इस साल होलिका दहन की तिथि पर सुबह में भद्रा रहेगी।
महाबीर पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च दिन सोमवार को शाम 03:47 मिनट पर शुरू होगी और समापन 07 मार्च दिन मंगलवार को शाम 05:40 मिनट पर होगा। प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि महाबीर पंचाग के अनुसार 6 मार्च सोमवार को भद्रा पूछ रात्रि 12 : 23 से लेकर रात 01 :34 के मध्य होलिका दहन का शुभ मुहूर्त होगी। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है।
होली का महत्व:
भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया। होलिका को वरदान मिला था कि उस में आग का प्रभाव नहीं होगा। इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर वही भस्म हो गई। इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है।
होलिका दहन में राशि अनुसार आहुति देने और रंग लगाने से सभी मनोकामना पूर्ण होकर ग्रह बाधा दूर होंगे।
मेष – इस राशि के जातक 7 काली मिर्च होलिका में अर्पण करें। इससे स्वास्थ्य संबंधी परेसानी दूर होगी। होली पर मेष राशि के जातकों को हरे और नीले रंग का प्रयोग से बचना चाहिए।
वृष – सफेद चंदन से तीन फेरे होलिका के लेकर डाले इससे मानसिक चिंता दूर होगी। मान सम्मान बढ़ेगी। इन्हे नारंगी, पीला और लाल रंग से बचाना चाहिए।
मिथुन – चने की दाल की आहुति देने से आर्थिक संकट समाप्त होगा। सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। लाल एवं नारंगी रंग लगाने से बचाना चाहिए।
कर्क – सौंफ की होलिका में आहुति देने से वाणी दोष दूर होगा और बिगड़े काम बनेंगे। इन्हें काले और नीले रंग से बचाना चाहिए।
सिंह- इस राशि के जातक को जौ की आहुति होलिका में अर्पण करने से किसी भी रोग से छुटकारा मिल जाता है। सुख शांति और सम्मान में बढ़ोतरी होती है। इन्हें हरे और नीले रंग से बचाना चाहिए।
कन्या- 3 जायफल 3 काली मिर्च की आहुति होलिका दहन में डालने से सभी संकटों से मुक्ति मिल जाएगी। दांपत्य जीवन में शुभता लेकर आएगी। इन्हें नारंगी रंग से परहेज करना चाहिए।
तुला – इस समय व्यर्थ के कार्यों में समय बर्बाद होगा, नौकरी में सफलता मिलेगी, काले तिल और 2 हल्दी की गांठ होलिका में अर्पित करने से कार्य में सफलता तथा पदोन्नति होगी। इस जातक को लाला,पीला और नारंगी रंग से बचाना चाहिए।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वालों को पीली सरसों 3 बार ऊसार कर होलिका में आहुति देने से भाग्योदय के साथ साथ उन्नति लेकर आएगी। इन्हें नीला रंग के प्रयोग से बचाना चाहिए
धनु- इस राशि के जातक को चावल व तिल दहन में डालने से सकंट दूर होगा और सफलता प्राप्त होगी। नीला रंग के प्रयोग से इन्हे बचाना चाहिए
मकर- इस राधिके जातक को 5 हल्दी की गांठ दहन में अर्पण करने से शनि के साढ़े साती का प्रभाव थोड़ा कम होता है। लाल, पीला और नारंगी रंग लगाने से बचाना चाहिए।
कुंभ – इस राशि के जातकों को मूंग की दाल, काले तिल के मिश्रण को होलिका में अर्पित करने से इससे फिजूल खर्च से मुक्ति मिलेगी। लाल, पीला और नारंगी रंग नही लगाने चाहिए।
मीन – जीरा और नमक की आहुति होलिका में देने से धन लाभ होता है और तरक्की मिलेगी। काला, नीला, और हरा रंग इन्हे नही लगाने चाहिए।
होली का पर्व चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है।
उद्या तिथि में प्रतिपदा 08 मार्च को सूर्योदय से साम 06 : 45 तक है। इसलिए होली का पर्व 08 को मनाया जाएगा। वही काशी में एक दिन पहले होली मनाया जाता है इसलिए बनासर में 07 को ही होली मनाया जाएगा।