बोकारो: जिले के पेटरवार के जगजीवन नगर में होलिका दहन का कार्यक्रम किया गया. होली खुशियों, उमंग और उल्लास का त्योहार है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन का त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि होलिका की अग्नि की पूजा करने से कई तरह के लाभ मिलते हैं. होलिका दहन की लपटें बहुत शुभकारी होती हैं. होलिका दहन की अग्नि में हर चिंता खाक हो जाती है, दुखों का नाश हो जाता है और इच्छाओं को पूर्ण होने का वरदान मिलता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी है. ये मान्यता है कि विधि विधान से होलिका पूजा और दहन करने से मुश्किलों को खत्म होते देर नहीं लगती.
होलिका दहन पौराणिक कथा और हिंदू पुराणों के अनुसार, हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा, कई असुरों की तरह, अमर होने की कामना करता था. इस इच्छा को पूरा करने के लिए, उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की. प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हिरण्यकशिपु को वरदान स्वरूप उसकी पांच इच्छाओं को पूरा किया कि वह ब्रह्मा द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी के हाथों नहीं मरेगा, वह दिन या रात, किसी भी हथियार से, पृथ्वी पर या आकाश में, अंदर या बाहर नष्ट नहीं होगा, पुरुषों या जानवरों, देवों या असुरों द्वारा नहीं मरेगा, वह अप्रतिम हो, कि उसके पास कभी न खत्म होने वाली शक्ति हो, और वह सारी सृष्टि का एकमात्र शासक हो.
जिसके घमंड मे वह अत्याचार करने लगा और अपने आप को भगवान समझने लगा. ठीक उसके विपरीत उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का आराध्य था. जिसे देख कर वह अत्यंत क्रोध करता था. उसी क्रम मे अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि तुम प्रहलाद को अपनी गोद मे बैठकर अग्नि मे समर्पित हो जाओ. आदेश के पालन में होलिका ने वैसा ही काम किया. मगर भगवन की लीला, होलिका जिसको वरदान था कि वो आग मे नहीं जलेगी. मगर उल्टा ही होलिका जल कर भस्म हो गई मगर विष्णु भक्त प्रहलाद अग्नि से बाहर निकल आया. तब से होलिका दहन का कार्यक्रम शुरू हो गया. इससे देखने को यह मिलता है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की ही जीत होती है.