Joharlive Team
गिरीडीह। गिरीडीह के विभिन्न प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मुहर्रम व प्रकृति पर्व करमा मनाने की तैयारी जोरों पर है। चांद दिखते ही लोग अपना-अपना पर्व मनाने की तैयारी कर रहे हैं। चांद दिखते ही मुस्लिम समुदाय का डंका बजना शुरू हो जाएगा, जबकि हिंदू समुदाय के पर्व करमा पर गीतों की आवाज गूंजने लगेगी। यह कार्यक्रम लोग कोरोना का ख्याल रखने के साथ-साथ शारीरिक दूरी बनाकर ही कर रहे हैं।
बता दें कि, एक ही समय दोनों समुदाय का पर्व पड़ने के कारण, बिरनी के एक गांव नवादा में करमा पर्व नहीं होगा, क्योंकि वहां हिंदू समुदाय के लोग मुहर्रम मनाते हैं। उस गांव में प्राचीनकाल से ही मुस्लिम समुदाय के एक भी लोग नहीं रहते हैं। उसके बाद भी हिंदू परिवार के लोग मुहर्रम का ताजिया लगाते आ रहे हैं।
दूज का चांद दिखते ही उस गांव के हिदू परिवार नेक पाक से रहते हुए, अपने पर्व को छोड़ मुहर्रम का ताजिया लगाने में लग गए हैं। नवादा में दरगाह व कर्बला भी है. वहां फातिमा भी होता है। इसके लिए दूसरे गांव के एक मुजाबर आते हैं और पूरे नेक नियम से दरगाह पर फातिमा करते हैं।
नवादा के ग्रामीण रघुनंदन यादव, दामोदर यादव, विनोद यादव आदि ने बताया कि, इस गांव में प्राचीनकाल से मुहर्रम का ताजिया हिंदू परिवार लगाते आ रहे हैं। कई पीढ़ी गुजर गई है जो, उनके पूर्वजों की देन है। उनकी परंपरा को अब तक चलाते आ रहे हैं। चांद दिखते ही मुहर्रम के समय इस गांव की महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर लगाना बंद कर देती हैं।
मुहर्रम के समय यदि सनातन धर्म का पर्व आ जाता है या फिर दोनों का समय एक होता है तो, सनातन धर्म के पर्व को बंद कर, मुहर्रम को प्राथमिकता देकर यहां के लोग मनाते हैं। ‘अतिथि देवो भव’: इस श्लोक में कहा है कि, अतिथि को सबसे पहले सम्मान देना चाहिए। इसी तरह इस गांव के यादव परिवार, इस पर्व की आस्था को सम्मान देकर मनाते आ रहे हैं।
गांव के सभी नवयुवक महानगरों में रोजगार करते हैं, जो मुहर्रम मनाने के लिए अपने घर पहुंच जाते हैं। उस गांव के सभी हिंदू युवक मुहर्रम में बंदे बनते है। वे बड़े नेक नियम से रहते हैं। वे लोग अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए कई कर्बलों में जाकर हाजरी लगाते हैं। कहा जाता है कि, इस गांव में मुहर्रम का ताजिया लगना कभी बंद नहीं हो सकता। बंद करने पर गांव पर बहुत बड़ी आफत आ जाती है, इसलिए यह कभी बंद नहीं हो सकता है।