धर्म/ज्योतिष

अविरल दाम्पत्य सुख एवम् अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत है हरितालिका तीज

रांची: हरतालिका व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के तृतीय तिथि हस्त नक्षत्र में किया जाता है। मान्यता है की यह व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए रखा था। इस व्रत में शिव और पार्वती के विवाह की कथा सुनाने का काफी महत्व है। इसे सुहागन स्त्रियाँ अपने पति के लंबी आयु, सुख, सौभाग्य, आरोग्य की कामना के लिए करती है। इस व्रत को कुवारी कन्याएँ बेहतर जीवन साथी की कामना के लिए करती है।

प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि तृतीया तिथि 05 सितंबर को प्रातः 10:05 मिनट पर प्रारंभ होगा और 06 सितंबर को दिन के 12: 09 मिनट पर समाप्त होगा। हस्त नक्षत्र 05 सितंबर को पूरा दिन रहेगा वही 06 सितंबर को दिन के 08:10 में समाप्त होगा। इसलिए 6 सितंबर को सूर्योदय में तृतीया होने से इस दिन पूरे दिन तृतीया मान्य होगा।

 

 

पूजन विधि :: हरतालिका तीज व्रत प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के 3 मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। जिसमे दिन और रात के मिलन का समय होता है। इस व्रत को पुरे दिन और रात निर्जला रह कर किया जाता है। सुहागिन महिलाएं शिवालय जा कर माता पार्वती और शिव जी और गणेश की पूजा करती है, जो सुहागन स्त्रियां मंदिर नही जा सकती हैं, ओ घर मे ही मिट्टी या रेत की भगवान शिव और माता पार्वती और की प्रतिमा बना कर पूजन करें।

 

 

पूजा स्थल को बेलपत्र के झालर, रंगोली और फूलों से सजाये तथा माता पार्वती का श्रृंगार करें। इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार विधि से पूजन करें।

यह व्रत पति पत्नी दोनों साथ मिलकर करना चाहिए। उसके हरतालिका व्रत का कथा श्रवण कर आरती करे तथा रात्रि जागरण कर व्रत का उत्सव मनावे।

कथा : माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय के गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर खाती और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही जीवन व्यतीत किया। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वतीजी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है.

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं.

प्रसिद्ध ज्योतिष

आचार्य प्रणव मिश्रा

आचार्यकुलम, अरगोड़ा, राँची

8210075897

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