रांचीः हरिमति मंदिर वर्धमान कंपाउंड, रांची की दुर्गा पूजा का इतिहास 88 साल पुराना है. 1935 में मंदिर की स्थापना की गयी और पूजा 1936 से शुरू हुई. पहली बार पांच लोगों नरेंद्र नाथ चक्रवर्ती, जतीन मुखर्जी, सचिन गांगुली, तुलसी दास मुखर्जी, विजय गोपाल भट्टाचार्य, उमा बनर्जी और रंजीत मुखर्जी ने छोटे तौर पर मां की पूजा आरंभ की थी. आज यह पूजा वृहत रूप ले लिया है. यहां बंगाली रिति-रिवाज से पूजा की जाती है. 10 दिनों तक महिलाओं, बच्चों व बुजूर्गों का जमघट लगा रहता है. इस बारे हरिमति मंदिर के कोषाध्यक्ष गौरव घोष दस्तीदार बताते हैं कि यहां पुरानी पद्धति से ही पूजा हो रही है. कुछ भी बदलाव हमने नहीं किया है.
नरेंद्रनाथ चक्रवर्ती की मां का नाम हरिमति था, जिसके नाम पर हरिमति किया गया. मंदिर बनवाने के लिए नरेंद्रनाथ चक्रवर्ती के परिवार ने मंदिर के लिए जमीन उपलब्ध कराई थी.
गौरव ने बताया कि इस बार ओडिशा से कुक मंगाया जा रहा है. जो सप्तमी, अष्टमी व नवमी का भोग तैयार करेंगे. कई वर्षों से हरिमति मंदिर में भोग की तैयारी कुक हरिपंडा द्वारा तैयार किया जाता था. उनकी तबीयत ठीक नहीं रहने की वजह से वह नहीं आ पा रहे हैं. बताया गया कि कुल 12 लोगों की टीम ओडिशा से आ रही है.
गौरव ने बताया कि मंदिर में तीन दिन सप्तमी,अष्टमी व नवमी को भोग का वितरण किया जाता है. बताया कि अष्टमी के दिन 1000 किलो चावल और 800 किलो मूंग दाल का भोग तैयार किया जायेगा. वहीं, सप्तमी और नवमी के दिन 800 किलो चावल और 600 किलो मूंग दाल का भोग तैयार किया जायेगा.
मां का पट षष्टी को खुल जायेगा. इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जायेगा. इसमें नृत्य और गाना का भी कार्यक्रम होगा.
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