पूर्वाखाढ़ और ऐन्द्र योग में मनेगा गुरुपूर्णिमा

5 जुलाई को है यह पवन पर्व।
बुद्धादित्य योग में होगा गुरुपूजन।

गुरुपूर्णिमा का दूसरा नाम ब्यासपूर्णिमा

गुरु की महिमा बताते हुवे कबीर दास ने बताया है कि यदि गुरु और गोबिंद दोनों खड़े हैं तो पहले गुरु को प्रमाण करो । क्योकि गुरु ही है जो गोबिंद से मिलता है।

गुरु गोबिंद दाऊ खड़े काके लागू पाय।।
बलिहारी गुरु आपनो गोबिंद दियो बताया।।

इसलिए कहा जाता है कि गुरु मंत्र लेने के बाद सारा मंत्र का महत्व कम हो जाता है।

अंधकार से प्रकाश में लाने वाला कोई और नही हमारा गुरु होगा है। भगवान से मिलाने वाला कोई है तो गुरु है। व्यक्ति का प्रथम गुरु माता होती है। पुनः जिनसे हम दीक्षा लेते हैं वह हमारे गुरु होते हैं। इनका स्थान भगवान से भी ज्यादा होता है। चाहे देवता हो दानव हो या मानव हो उसे जीवन मे सत्य को खोज में गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है।गुरु के महत्व को समर्पित है गुरु पूर्णिमा का पवन पर्व जो आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को श्रद्धाभाव और उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इस पूर्णिमा को गुरु की पूजा का विधान है। सनातन धर्म में गुरु देवतातुल्य माने गए है। गुरु को हमेसा ही त्रिदेव के सामान पूज्य माना गया है। जीवन में जो भी सुख, संपन्नता, ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता यह सब गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है. इस दिन गुरु पूजन की परम्परा को एक महत्व्पूर्ण स्थान दिया गया है, जिस कारण इस पर्व को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा तथा आषाढ़ी पूनम के नाम से जाना जाता है।

गुरु पूर्णिमा इस साल 05 जुलाई दिन रविवार को मनाया जायेगा। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना गया है। एक बार ऋषि श्रेष्ट भील जाति के व्यक्ति को पेड़ को झुका कर नारियल तोड़ते देखा तो व्यास जी के मन में उस विद्या को सिखने की इच्छा हुई परंतु वह भील डर और संकोच से उनसे दूर भगत रहा।

एक दिन ऋषिवर उसके घर पहुचे तो उनकी भेट उस भील के पुत्र से हुई और भील पुत्र उन्हें मन्त्र देने को तैयार हो गया। पिता से रहा नहीं गया और फिर उसने अपने पुत्र से कहा की पुत्र मैं गुरु श्रेष्ठ को यह मन्त्र नहीं देना चाहता था क्योकि जिस व्यक्ति से मन्त्र लिया जाता है वह गुरु तुल्य होता है और यदि मन्त्र देने वाले को पूज्य न समझ जाय तो मन्त्र फलित नहीं होता है क्या हमारी निम्न जाति होने के कारन व्यास जी हमारा सम्मान करेंगे क्या ओ तुम्हे गुरु सम आदर देंगे? व्यास जी की परीक्षा लेने के उदेश्य से भील पुत्र उनके आश्रम पंहुचा अपने गुरु को आता देख व्यास मुनि ने उनका पैर पूजन कर उनको मान-सम्मान दिया यह देख पिता पुत्र बहुत प्रसन्न हुए।

तभी से परम पूज्य मुनि को गुरु शिष्य परंपरा में सबसे अग्रणी गुरु मन गया है। इसलिए इस आषाढ़ी पूर्णिमा को वेद व्यास जी का पूजन का विधान है। इस पूर्णिमा को व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है इस पूर्णिमा से साधू- संत एक ही स्थान में रह कर ज्ञान की प्राप्ति करते है। गुरु पूर्णिमा में गुरु चरणों में उपस्थित साधकों की ज्ञान, शक्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।। प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने बताया कि आषाढ़ माह की पूर्णिमा को संस्कृत के प्रकांड विद्वान वेदों के रचयिता और महाभारत के लेखक महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था जिसके कारन इसे गुरु पूर्णिमा तथा व्यास जयंती और व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्यास जी का अंश मान कर गुरुओं की पूजा का विधान है।

शास्त्रों में भी गुरु को भगवान से भी श्रेष्ट माना गया है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकरी , ज्ञानवर्द्धन और मंगलकारी होता है जो मनुष्य को शांति और मोक्ष की ओर ले जाता है। गुरु दिक्षा और गुरु मन्त्र लेने के लिए आषाढ़ माह की पूर्णिमा सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन गुरु की पूजा कर यथा सम्भव गुरु की सेवा करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।इसके साथ-साथ परिवार के बड़े सदस्यों को भी गुरु तुल्य मान कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।

आचार्य प्रणव मिश्रा
आचार्यकुलम, अरगोड़ा, राँची
9031249105

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