रांची : झारखंड राज्य समन्वय समिति ने विधानसभा में पारित विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद – 200 के अनुरूप विचार करके जनहित में निर्णय लेने का राज्यपाल सीपी राधाकृष्ण से अनुरोध किया है। इस संबंध में राज्यपाल से मिलकर एक पत्र भी सौंपा है, जिसमें कहा गया है कि सरकार ने तीन महत्वपूर्ण विधेयकों यथा ( 1 ) झारखण्ड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 (2) झारखण्ड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 एवं (3). झारखण्ड (भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण) विधेयक, 2021 विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल सचिवालय को अनुमोदन हेतु भेजा था। इन विधेयकों से ना केवल यहां के लोगों की अस्मिता एवं पहचान जुड़ी हुई है, बल्कि यहां के पिछड़े, दलित एवं आदिवासियों के हक एवं अधिकार भी जुड़े हुए हैं। साथ ही जिस प्रकार से विगत आठ-नौ वर्षों में देश में सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने का सुनियोजित प्रयास हुआ है, उसमें झारखण्ड (भीड़ हिंसा एवं माब लिंचिंग निवारण) विधेयक, 2021 विधेयक अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।
ये लिखा है पत्र में
समिति ने पत्र में लिखा है कि दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने महाजनों एवं सामन्तवादी व्यवस्था के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसके फलस्वरूप झारखण्ड अलग राज्य का गठन हुआ। उनके साथ इस लड़ाई में लाखों आन्दोलनकारी शामिल हुए और सैकड़ों शहीद निर्मल महतो जैसे उनके साथियाें ने अपने प्राणों की आहुतियां दीं। उनकी यह लड़ाई न केवल इस राज्य के आदिवासी / मूलवासी को उनका वाजिब हक दिलाने के लिए थी, बल्कि यह झारखण्डी अस्मिता एवं पहचान से भी जुड़ी हुई थी।
राज्यपाल सचिवालय को किया था प्रेषित
राज्य सरकार ने इन सभी विधेयकों को भली-भांति एवं कानूनी तौर पर परखने के उपरांत ही विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल सचिवालय को अनुमोदन हेतु प्रेषित किया था, परन्तु राज्यपाल सचिवालय द्वारा कुछेक बिंदुओं पर आपत्ति करके इन्हें सरकार को लौटा दिया गया। परन्तु यह अत्यंत ही खेदजनक है कि ऐसा करते वक्त भवदीय के सचिवालय द्वारा संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया एवं इसे बगैर आपके संदेश के वापस कर दिया गया। राज्यपाल सचिवालय द्वारा विधेयक को वापस करते समय भारत के संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत राज्यपाल महोदय का संदेश संलग्न करना एक संवैधानिक जरूरत है। जिसके बगैर राज्य सरकार द्वारा त्रुटियों का निराकरण कर पुनः विधान सभा में विधेयक को पेश करने में वैधानिक कठिनाई हो रही है।