रांची : सरहुल पर्व के मौके पर रांची यूनिवर्सिटी के जनजातीय भाषा विभाग में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन मौजूद रहे. उनके साथ केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पद्मश्री अशोक भगत, आरयू के वीसी समेत कई गणमान्य भी शामिल हुए. राज्यपाल का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया गया. ढोल-नगाड़े के साथ युवक-युवतियों ने राज्यपाल का स्वागत किया. इसके बाद राज्यपाल ने मंडप में विधि-विधान से पूजा अर्चना की. राज्यपाल ने कहा कि सरहुल हमें सिखाता है कि प्रकृति की पूजा हर दिन करनी चाहिए. वसंत ऋतु में सरहुल पर्व का मतलब ही है प्रकृति और पेड़ों की पूजा. पेड़ों की पूजा, जानवरों की पूजा और जंगल की पूजा हमारे जीन में है जो कभी समाप्त नहीं होगा.
प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं
जन्म से ही झारखंड के लोग प्रकृति से प्रेम करते है. इसी स्नेह की वजह से पूर्वजों ने सरहुल की शुरुआत की. जिसमें हम पेड़ों को भगवान की तरह पूजते है. उन्होंने कहा कि दूसरी बार सरहुल महोत्सव में शामिल हुआ है. कहा कि ये जानकर खुशी हो रही है कि न केवल आदिवासी भाई बल्कि दूसरे समुदाय के लोग भी सरहुल मना रहे है. मानव प्रजाति प्रकृति से जुड़ा हुआ है. प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती.
प्रकृति से कल को बेहतर बना सकते है
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सरहुल पूजा के माध्यम से प्रकृति और पूर्वजों का स्मरण करते हुए आने वाले कल को बेहतर बना सकते है. आरयू के वीसी डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि सरहुल हमारे आदिवासी भाई-बहनों के नव वर्ष का प्रतिक होता है. मानव जाति और प्रकृति का प्रेम भी दर्शाता है. अलग-अलग गांवों में ये अलग-अलग समय पर भी मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि आज जिस तरह से प्रकृति का दोहन किया जा रहा है. प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ चुका है. ऐसे में इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.
पारंपरिक गीतों पर थिरकते रहे युवा
विभिन्न कॉलेजों, समूहों के जनजातीय युवाओं की टोली. लाल पाड़ की साड़ी में युवतियां और सफेद गंजी व धोती में उपस्थित युवक. संताली, मुंडारी, कुडुख और हो भाषाओं में सरहुल के गीत. सभी इष्ट देव से विनती करते दिखे. पारंपरिक गीत पर सामूहिक नृत्य पेश करते रहे. इन गीतों में सरहुल के अवसर पर फूलों के खिलने की, नृत्य के लिए आमंत्रित करने का संदेश था.
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