Joharlive Desk
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ संक्रमण की जांच के लिए ऊंची फीस नहीं वसूली जा सकती और वह इस मामले में अपना आदेश सुनाएगा।
याचिकाकर्ता शशांक देव सुधी ने निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना वायरस संक्रमण की जांच नि:शुल्क कराये जाने का न्यायालय से अनुरोध किया है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मामले में अपना आदेश सुनाएगी, क्योंकि जांच के नाम पर इतनी ऊंची फीस नहीं वसूली जा सकती।
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह ऐसा कोई ऐसा तंत्र विकसित करे, जिसके तहत निजी प्रयोगशाला की जांच फीस सरकार वापस कर दे। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस मामले में सरकार का पक्ष जानने का प्रयास करेंगे।
याचिकाकर्ता ने गत 31 मार्च को एक याचिका दायर करके सरकार की तरह ही निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना वायरस ‘कोविड 19’ के संक्रमण की जांच नि:शुल्क कराने का दिशानिर्देश केंद्र सरकार को देने की मांग की है।
श्री सुधी ने कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच के लिए निजी प्रयोगशालाओं में 4500 रुपये की फीस निर्धारित किये जाने के सरकार के निर्णय को मनमाना और विवेकहीन करार दिया है।
याचिका में कहा गया है कि कोरोना वायरस से संबंधित सभी परीक्षण नेशनल एक्रिडेशन बोर्ड फोर टेस्टिंग एंड कॉलिब्रेशन लेबोरिटीज़ (एन ए बी एल) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं के तहत ही किए जाने चाहिए, क्योंकि गैर-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं है।
याचिका में सरकार को यह भी निर्देश देने की मांग की गई है कि वह सरकारी डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ सहित सभी निजी अस्पतालों के डॉक्टरों को समायोजित करने के लिए कहे ताकि वे प्रभावी रूप से महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो सकें।
याचिकाकर्ता ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा 17 मार्च को जारी परामर्श को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के प्रावधानों के खिलाफ बताया है और कहा है कि इस परामर्श में कोरोना वायरस के मद्देनजर असाधारण स्वास्थ्य संकट में परीक्षण सुविधाओं की पहुंच में भेदभाव किया गया है।