JoharLive Team
- खरना 1 नवंबर :- 8 : 15 से 10 बजे तक।
- सांध्यकालीन अर्घ 2 नवंबर साम 4:20 से 5: 20 तक
- सूर्योदय कालीन अर्घ 3 नवंबर सुबह 5: 50 से 7: 10 तक
- रवियोग, सर्वसिद्धयोग, त्रिपुष्कर योग में मनेगा छठ महापर्व
- छठ में गलती से भी गलती न हो
सर्व मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाने वाला छठ व्रत चार दिनों तक मनाये जाने वाला महा पर्व है । कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से कार्तिक शुक्ल पक्ष् सप्तमी तक होता है छठ महा पर्व सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है।
छठ महापर्व इस बार 31 अक्टूबर से 3 नवम्बर तक मनाया जायेगा जिसमे ये चरों दिन विशेष महत्वपूर्ण हैं।
पहला दिन – छठ पूजा का पहला दिन 31 अक्टूबर गुरुवार नहाय खाय के नाम से जाना जाता है जिसमे पवित्रता का ध्यान रखते हुए व्रती को सेंधा नमक और घी से बना हुआ अरवा चावल,चना की दाल और कद्दू की सब्जी बना कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
दूसरा दिन – छठ पूजा का दूसरा दिन दिन 1 नवम्बर शुक्रवार को खरना या खीर भोजन कहलाता है इस दिन से उपवास शुरू होता है इस दिन व्रती को पूरा दिन अन्न जल का त्याग करना पड़ता है और साम में शुद्ध दूध और अरवा चावल का खीर बना कर पूजा कर के प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण किया जाता है।
तीसरा दिन – छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य कहलाता है जो 2 नवम्बर शनिवार को है इस दिन व्रती को दिन और पूरी रात निर्जला व्रत करना होता है तथा बांस के बने सूप जो वंश वृद्धि का सूचक है। आटे का ठेकुवा जो समृद्धि का द्दोतक है। ईख जो आरोग्यता का द्दोतक है। और फल-फूल जो फल प्राप्ति के द्दोतक हैं इन सभी चीजो के साथ सूप को सजा कर अस्त होते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
चौथा दिन – छठ पूजा का चौथा दिन प्रातः काल का अर्घ्य कहलाता है जो 3 नवम्बर रविवार को है इस दिन भी संध्या अर्ध्य के सामान ही सुप को सजाकर उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य प्रणव मिश्रा ने कहा कि छठ व्रत का शुभ संयोग और इस चार दिनों के इस पर्व में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्री शुक्ल पक्ष् के षष्टि तिथि को होता है जिसके कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत पडा छठ व्रत साल में दो बार मनाया जाता है पहला चैत में तथा दूसरा कार्तिक माह में पारिवारिक सुख-संवृद्धि तथा मनवांछित फल प्राप्ति हेतु स्त्री और पुरुष सामान रूप से इस पर्व को मानते है । मुहूर्त: इस बार छठ महा पर्व सौम्य और स्थिर योग में 31 अक्टूबर नहाय खाय से 3 नवम्बर प्रातः अर्घ का शुभ योग बन रहा है।
पौराणिक कथानुसार : महाभारत में जब पांडव अपना सारा राज- पाट जुए में हार गए तो श्री कृष्ण के द्वारा छठ की महता बताने पर द्रोपती ने छठ व्रत पुरे विधि- विधान के साथ किया जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और पांडवो का पूरा राज- पाट, मान-सम्मान वापस मिल गया।
छठ पर्व का वैज्ञानिक कारण भी माना गया है : षष्टि तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है इस दिन सूर्य की पराबैगनी किरणे पृथ्वी की सतह पर सामान्य मात्रा से अधिक होती है जिससे बहुत सारे कुप्रभाओं से पृथ्वी के जीव को लाभ मिलता है।
आरोग्य के देवता के रूप में सूर्य की उपासन: सूर्य को आरोग्य के देवता भी कहा गया है सूर्य की किरानी में कई रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है। एक बार कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ट रोग हो गया था इस रोग से उनकी मुक्ति के लिए शाक्य दीप से ब्राम्हणों को बुलाकर विशेष सूर्य की उपासना की गई थी जिससे शाम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी। विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं। सप्तमी तिथि में सूर्य का प्रभाव एक हजार गुणा अधिक हो जाता है इस तिथि को गंगा स्नान मात्र से शरीर के सारे कष्टों का नाश हो जाएगा और सौ अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होगी
खरना
छठ महा पर्व का दूसरा दिन खरना से सुरु होता है। आज के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है।साम के समय व्रती खीर का भोजन लेती हैं। कही कही रोटी और फल खाने का नियम भी है। यह इन वर्ष 1 नवम्बर को है। रात्रि सवा आठ से 10 बजे के बीच प्रसाद ग्रहण कर लेना चाहिए।
संध्या कालीन अर्घ :-
छठ महापर्व का तीसरा दिन साम को भगवान सूर्य का पूजन और अर्घ दिया जाता है। यह पवन समय 2 नवंबर शनिवार को है। अर्घ का समय 4: 20 से 5: 20 मिनेट तक है। व्रती साम को नदी तालाब में जा कर मौसमी फल प्रसाद और ईख से जल देते हैं।
सूर्योदय कालीन सूर्य को अर्घ:-
पूजन के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ दिया जाता है। यह पवन समय 2 नवंबर को रविवार को है। सुबह का समय 5: 50 से 7 : 10 तक का समय सरवोत्तम है।